विस्तार उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को विराष्ट्री सहयोग विनियमन अधिनियम 2010 के कुछ प्रावधानों में किए गए संशोधनों की वैधता बरकरार रखी है. ये संशोधन सितंबर 2020 से असर में आए थे. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विराष्ट्री सहयोग के दुरुपयोग के पिछले अनुभव के कारण कठोर शासन आवश्यक हो गया था. विराष्ट्री चंदा प्राप्त करना पूर्ण या निभलाई अधिकार नहीं हो सकता है, क्योंकि देशीय राजनीति के विराष्ट्री सहयोग से असरित होने की संभावना का सिद्धांत विश्व स्तर पर मान्य है.
एनजीओ को मिलने वाली विराष्ट्री फंडिंग को कठोरी से विनियमित करने के लिए किए गए संशोधनों को बरकरार रखते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा कि विराष्ट्री सहयोग के कई प्राप्त करने वाले कई संगठनों ने इसका उपयोग उन उद्राष्ट्र्यों के लिए नहीं किया था जिनके लिए उन्हें दर्ज़ किया गया था या अधिनियम के अनुसार पूर्व अनुमति दी गई थी. न्यायालय ने आगे कहा कि विराष्ट्री फंडिंग पाने वाली कई संस्थाएं वैधानिक अनुपालनों का पालन करने और पूरा करने में असफल रहे.
ये संशोधन अधिनियम की धारा 7, 12(1ए) और 17 में किए गए थे. न्यायाधीश एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संअध्ययनित प्रावधान संविधान और मूल अधिनियम के भीतर आते हैं. हालांकि, पीठ ने इस अधिनियम की धारा 12ए को पढ़ा और कहा कि इसका मतलब संघों या गैर गवर्नमेंटी संगठनों के प्रमुख पदाधिकारियों या फिर ऐसे पदाधिकारियों को जो हिंदुस्तानीय नागरिक हैं, उनकी पहचान के उद्राष्ट्र्य से हिंदुस्तानीय पासपोर्ट प्रस्तुत करने की अनुमति देना है.
132 पृष्ठों का फैसला विराष्ट्री अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम 2020 के अनुसार एफसीआरए 2010 के प्रावधानों में संशोधन की संवैधानिक वैधता पर हमला करने वाली याचिकाओं पर दिया गया था, जिन्हें 29 सितंबर 2020 को लागू किया गया थे. फैसला देने वाली पीठ में न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार भी शामिल थे.