गांधीनगर के रूपाल पर ९वीं के दिन सोमवार को प्रसिद्ध वरदायिनी माता की भव्य पल्ली आयोजित की जाएगी । सोमवार रात को १२ बजे मंदिर परिसर से पल्ली की शुरूआत होगी । रूपाल गांव में पांडवकाल से चली आ रही पल्ली के मेले में आज भी हजारों किलो घी माताजी की पल्ली में अर्पित की जाएगी, इस रात को रूपाल गांव में घी की नदियां बहती हो ऐसे दृश्य देखने को मिलते है । पांडवों के समय से चली आ रही वरदायिनी माता की पल्ली की तैयारियों को प्रशासन और मंदिर ट्रस्ट द्वारा अंतिम रूप दिया जा रहा है । इस बार पल्ली के लिए करीब ५०० से ज्यादा पुलिस और सुरक्षा जवानों का स्टाफ तैनात किया जाएगा जबकि सीसीटीवी और विडियो कैमरे से भी पल्ली पर नजर रखा जाएगा । प्रसिद्ध वरदायिनी माता की पल्ली का इतना महात्म्य है कि, इसके दर्शन पर सिर्फ गुजरात ही नहीं लेकिन देश-विदेश से लोग पल्ली के मेले की महिमा का अनुभव करने आते हैं । पांडवों ने गुप्त वास के समय पल्ली की शुरूआत की थी । इस समय में बनाये गये सोने की पल्ली अब लकड़ी से बनाई जाती है । हर वर्ष पल्ली नई बनाई जाती है, जिसमें कहीं भी लोहे का उपयोग नहीं होता है । वरदायिनी मंदिर की बनती यह पल्ली भी सामाजिक समरसता का प्रतीक है । गांव के सभी समाज के लोग यह पल्ली बनाने के लिए काम करते हैं । सुबह से पल्ली बनाने की शुरूआत होती है जिस तरीके से पल्ली तैयार होता है । धार्मिक महत्व की दृष्टि देखे तो, सृष्टि के प्रारंभ में यहां दुर्मद नाम का अति बलवान और भयंकर राक्षस रहता था । उसने ब्रह्माजी द्वारा बनाये गये सृष्टि का नाश करके ब्रह्माजी पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था । इसी वजह से ब्रह्माजी श्री वरदायिनी माताजी के शरण पर गये । श्री माताजी ने पुत्र रूप में शरण में आये ब्रह्माजी को सांत्वना दिया । माताजी ने दुर्मद के साथ युद्ध करके इसका संहार किया और मानसरोवर का खुद निर्माण करके अपनी घायल वाले कपड़ों को इसमें घोया और यहां स्थाई के लिए निवास किया । आसो सुद-९ के दिन गांव में भक्तों की महाभीड़ पहुंचती है । ३३ दीये की आरती के साथ देर रात को पल्ली यात्रा की शुरूआत होती है । सुबह में पल्ली माताजी के मंदिर के सामने बनाये गये पल्ली मंदिर में आता है । पल्ली पर लोग घी का अभिषेक करता है । हजारों किलो घी का अभिषेक वरदायिनी माताजी की पल्ली में अर्पित किया जाता है । लोगों में पल्ली के दर्शन करने के लिए हौड़ मच जाती है ।
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