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कैट ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध का समर्थन किया

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सिंगल यूज़ प्लास्टिक को प्रयुक्त न करने के स्पष्ट आह्वान जो प्रधानमंत्री द्वारा लगातार राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचों इसकी जोरदार वकालत किये जाने से यह मुद्दा प्रधानमंत्री सरकार की प्रतिबध्दता और गंभीरता को दर्शाता है जिसको देखते हुए कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने 1 सितम्बर से देश भर में व्यापारियों के बीच ” सिंगल यूज़ प्लास्टिक को न का एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया है और कैट इसे एक जन आंदोलन बनाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं ।

कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी सी भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा की हालांकि, देश में बड़ी संख्या में विनिर्माण इकाइयां हैं जो प्लास्टिक का उत्पादन करती हैं और देश के लाखों लोगों को रोजगार देती हैं। इसलिए प्लास्टिक निर्माण और ट्रेडिंग इकाइयों को बंद करने और लाखों लोगों को बेरोजगार करने के बजाय, उन्हें विकल्प तैयार करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए! प्लास्टिक उपयोगकर्ताओं को संभव विकल्पों को दिया जाना चाहिए।

जो महंगे नहीं हों और इन विकल्पों के बारे में लोगों को जागरूक करना बेहद जरूरी हैं। पैकेजिंग विकल्पों पर काम करने के लिए उद्योग को आरएंडडी पर काम करने के लिए प्रोत्साहित दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा की पर्यवरण मंत्री प्रकाश जावेड़कर को अविलम्ब उद्योग और व्यापार की एक मीटिंग इस मुद्दे पर बुलानी चाहिए।

उन्होंने कहा की बहुराष्ट्रीय कंपनियां और कॉर्पोरेट कंपनियां बड़े पैमाने पर अपनी प्रोडक्शन लाइन में अथवा तैयार माल में पैकिंग के रूप में उपयोग करती हैं ! सरकार तुरंत इन कंपनियों को आदेशित करे की वो सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल तुरंत प्रभाव से बंद करे !

भरतिया एवं खंडेलवाल ने कहा की केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अन्य संस्थानों के एक अध्ययन के अनुसार, प्रति दिन लगभग 26 मीट्रिक टन प्लास्टिक उत्पन्न होता है, जिसका वजन 9000 हाथियों या 86 बोइंग जेट 747 के बराबर होता है, जो काफी खतरनाक है। इसमें से लगभग 11 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा हो जाता है । रिपोर्ट के अनुसार, 60 शहरों से 1/6 प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है और जिसका आधा हिस्सा पांच महानगरीय शहरों दिल्ली, मुंबई, बंग्लौर, चेन्नई और कोलकाता से उत्पन्न होता है।

प्लास्टिक के कचरे समुद्र या जमीन पर जमा हो जाता है जो प्राकृतिक वातावरण के लिए बेहद खतरनाक है । इतना ही नहीं प्लास्टिक कचरा जल निकासी को अवरूद्ध करता है और नदी , मिट्टी, पशुओं द्वारा खाने से , तथा समुद्री इको सिस्टम आदि को विशेष रूप से ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में ज्यादा प्रदूषण फैलता है। प्लास्टिक कचरे को जलाने से स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्लास्टिक कचरे का हिस्सा दिल्ली के ठोस कचरा प्रबंधन का लगभग 8% है और यही स्तिथि कोलकाता और अहमदाबाद की है । यह गंभीर चिंता है कि कुल प्लास्टिक उत्पादन का केवल 60% पुनर्नवीनीकरण होता है और बाकी 40% कचरे के रूप में पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालता हैं जो बेहद चिंताजनक है।

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