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कही लीची से तो कही मोब लीचींग से और कही गोलियों से हो रही है मौत…!

कया लीची खाने से बच्चे मरते है क्या…? यह सवाल हाल ही में उठा था। मामला था बिहार का। 100 से ज्यादा कूपोषित बच्चे चमकी नामक बुखार की चपेट में आकर मर गये है। प्रशासन ने कहा की लीची ज्यादा खाने से ये बच्चे मर गये। चलो मान लिया। लेकिन जो मोब लिचींग से मर रहे हा या मारे जा रहे है उनका क्या कसूर…बिहार में मोब लीचींग, झारखंड में मोब लीचींग, जय श्री राम न बोले तो पिटाइ, बोले तो भी पिटाइ, कीसी पर जरा सा भी शक हुवा हो गइ पिटाइ। पीट पीट कर मार डालने की घटनायें कीसी हत्या से कम नही। युपी में जमीन को लेकर दनादन गोलियां चली। 10 लाशे बिछा दी। इसे जलियावाला हत्याकांड भी कह रहे है। 200 लोगोने आदिवासीयों पर धावा बोल दिया। मार डाले। आदिवासी नेता चुप। कोई पिडितो को मिलने जाये तो- नही..नही.. आप नहीं मिल सकते।
चुनाव से पहले बच्चा चोर गैंग की अफवाहें जोरो पर थी। कई निर्दोष लोग इसकी भेट चढ गये। सुप्रिम कोर्ट ने सभी राज्यों को मोब लीचींग रोकने का कानून बनाने को कहा था। कोइ इक्का दुक्का राज्यो ने कानून बनाया। बाकी के राज्यों में…? राम भरोसे। पशु तस्करी में पीट पीट कर हत्या। झारखंड में चार लोगो की पीट पीट कर हत्या। जब कानून बनानेवाले ही कानून तोड कर अफसरों की पिटाइ करे तो आम नागरिक उससे प्रेरणा लेकर हाथ में कानून ले तो देश कहा जायेगा। बिहार में असल में कूपोषण की वजह से गरीबों के कई मासुम बच्चे मर गये। हो सकता है की इन बच्चों ने स्थानिय तौर पर लीची खाई होंगी। लेकिन लीची की वजह से ही सब मारे गये यह कह कर प्रशासन बच निकला। भीड यदि कीसी को शक के बारे में मार दे तो हम क्या करे ऐसा भी सरकारें कह सकती है। कोर्ट ने ईसे रोकने के लिये कानून बनाने को कहा। ताकी कीसी निर्दोष की जान न जाय। लेकिन कहा है कानून…?
क्या भीड द्वारा पिटाई यानि मोब लीचींग कीसी संगठन की कोइ सोची समझी चाल है क्या…? बच्चा चोर की अफवाहें अब क्यों नहीं फैलती…? भीड द्वारा आज तो आम नागरिक की पिटाई हो रही है। लेकिन हो सकता है की कल को कीसी नेतागण भी इसका शिकार हो…! क्योंकी भीड तो आखिर भीड है। और कहते है न की भीड का कोइ चहेरा नहीं होता। लेकिन इसी भीडने जब सीखों को मारा तब क्या हुवा…? वह भी तो भीड ही थी। लेकिन उसके खिलाफ आज भी न्याय की लडाई चल रही है और चलनी भी चाहिये जब तक सभी दोषितो को सजा न मिल जाय तब तक। यदि उस भीड के खिलाफ राजनीतिक दल सीखो के साथ है तो इन दिनों जो भीड द्वारा हत्यायें हो रही है उसके लिये भी दो शब्द तो बनते हे मेरे दोस्त। सरकारें मोब लीचींग को रोकने के लिये और दोषितो को कडक सजा देने के लिये जल्द से जल्द कानून बनाये और सुप्रिम कोर्ट का मान सन्मान रखे। शिर्ष अदालत के कुछ आदेश का तो तुरन्त फटाफट अमल होता है। लेकिन लगता है की कुछ आदेश को क्या नजरअंदाज किया जाता है क्या…? यदि ऐसा नहीं तो फिर मोब लीचींग रोकने के लिये कानून बनाने में देर कीस बात की…देर न हो जाये कहीं देर न हो जाय..! इससे पहले कीसी और की पीट पीट कर हत्या हो सरकार और सरकारें इसे रोके। ताकी दुनिया भारत की ओर सन्मान नजरों से देखे…! देशवा में मोब लीचींग से निर्दोषो की हत्यायें और विदेशवा में बौध्ध की बाते करना…? कोइ तो जिम्मेवारी ले मोब लीचींग की…? लीची की…? लगता है वो क्या कहते है, प्रशासन ने कानों में हैन्डस फ्री लगा रखा है…!

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