तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान ऑल इिन्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने एनडीए सरकार को घेरने की कोशिश की है । सिब्बल का आरोप है कि तीन तलाक की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाकर केेन्द्र २००१ में तत्कालीन एनडी सरकार के रुख से पलट रहा है । सिब्बल का कहना है कि तीन तलाक जैसे पर्सनल लॉ से जुडी प्रथा को गलत या सही करार नहीं दिया जा सकता क्योंकि यह आस्था का विषय हैं और यह मामला संवैधानिक नैतिकता के दायरे में नहीं आता । हालांकि अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि बोर्ड दावा करता है कि तीन तलाक पर्सनल लॉ का हिस्सा है, इसलिए इसमें लिंग के आधार पर न्याय, समानता और महिला की गरिमा का ध्यान रखना ही होगा, जैसा कि संविधान में भी तय है । सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी के सेक्शन १२५ के तहत इदत्त की समयावधि के बाद भी हर्जाना पाने की हकदार हैं, अगर उसकी दोबारा शादी नहीं हुई और अपना खर्च उठाने में अक्षम हो । इसके बाद संसद ने मुस्लिम वुमन (प्रोटेशन ऑफ राइट्स ऑन डिवॉर्स) एक्ट १९८६ लाकर सुप्रीम कोर्ट के १९८५ के फैसले को निष्क्रिय कर दिया । इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई । २००१ में कोर्ट में इस मामले में सुनवाई के दौरान तत्कालीन एनडीए सरकार ने सॉलिसीटर जनरल के जरिए अपनी राय दाखिल की । सिब्बल के मुताबिक एनडीए सरकार ने एक्ट का यह कहते हुए बचाव किया था इससे संविधान के आर्टिकल १४ का उल्लंघन नहीं होता ।
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