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सुप्रीम का फैसलाः निजता का अधिकार अब हुआ मौलिक

सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार पर एतिहासिक फैसला दिया हैं । अदालत ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना हैं । यानी आपकी निजी जानकारी पर सरकार का हक नहीं होगा । सर्वोच्च अदालत की ९ जजों की बेंच ने इस मामले में एक मत से फैसला सुनाया । आधार से जुड़े मामले में कोर्ट बाद में सुनवाई करेगी । जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने इस सवाल पर तीन सप्ताह के दौरान करीब छह दिन तक सुनवाई की थी । सुनवाई के दौरान निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार में शामिल करने के पक्ष और विरोध में दलीलें दी गई । संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस एस ए बोबड़े, जस्टिस आर के अग्रवाल, जस्टिस आरएप नारिमन, जस्टिस ए एम सप्रे, जस्टिस धनन्जय वाईचन्द्रचूड, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं । निजता के अधिकार का मुद्दा केन्द्र सरकार की तमाम समाज कल्याण योजनाओं का लाभ हासिल करने के लिए आधार को अनिवार्य करने संबंधी केन्द्र सरकार के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उठा था । शुरु में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने सात जुलाई को कहा था कि आधार से जुड़े सारे मुद्दो पर वृहद पीठ को ही फैसला करना चाहिए और प्रधान न्यायधीश इस संबंध में संविधान पीठ गठित करने के लिए कदम उठाएंगे । इसके बाद प्रधान न्यायाधीश के सामने इसका उल्लेख किया गया तो उन्होंने इस मामले मंे सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित की थी । हालांकि पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने १८ जुलाई को कहा कि इस मुद्दे पर फैसला करने के लिए नौ सदस्यीय संविधान पीठ विचार करेगी । संविधान पीठ के सामने विचारणीय सवाल था कि क्या निजता के अधिकार को संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार घोषित किया जा सकता हैं । न्यायालय ने शीर्ष अदालत की छह और आठ सदस्यीय पीठ द्वारा क्रमशः खडेक सिंह और एमपी शर्मा केसों में दी गयी व्यवस्थाओं के सही होने की विवेचना के लिए नौाॆ सदस्यीय संविधान पीठ गचित करने का फैसला किया था । इन फैसलों में कहा गया था कि यह मौलिक अधिकार नहीं हैं । खड़क सिंह प्रकरण में न्यायालय ने १९६० में और एम पी शर्मा प्रकरण में १९५० में फैसला सुनाया था ।

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