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दुष्कर्म पर कठोर कानून कैसे बनेगा, जब कानून बनाने वालों के खिलाफ ही दर्ज है दुष्कर्म जैसे संगीन अपराध..?

-दुष्कर्म केस में एक माह में ही फैंसला, तुरन्त फांसी, यदि ऐसा होता तो पुलिस पर फूल नहीं बरसते…..!!
-दुष्कर्म कानून में कठोर से कठोर प्रावधान के लिये भी सत्ता मिली हैजी….
-गेंगरेप के आरोपीओं के एन्काउन्टर के बाद पुलिस पर फूल बरसना राजनेताओं के लिये डूब मरने जैसा….?

राजनेताओ को कहीं ये तो डर नही कि कठोर कानून से तो अपने भी लटक जायेंगे फांसी पर….?
-लोगों को अब राजनेता पर नहीं पुलिस पर विश्वास अधिक हो गया….?

(जी.एन.एस., प्रविण घमंडे) दि.6
जैसे को तैसा…..जैसी करनी वैसी भरनी….ऐसे दरिंदों के साथ तो ऐसै ही होना चाहिये……अदालत में उनके खिलाफ केस चलता तो उन्हें कब सजा मिलती….? दिल्ही के निर्भया रेप केस को ही ले लिजिये. हमारी न्याय प्रणालि और सरकारी सीस्टम ही ऐसी है की अभी तक निर्भया के अपराधीयों को फांसी नहीं दी गई, तो हैदराबाद के केस में दोषियों को कब तक बक्सा जाता…?!
यै है प्रतिक्रिया हैदराबाद के उस गेंगरेप के दोषियों को एन्काउन्टर में मार गिराने की घटना के लिये जिन्हों ने एक सरकारी महिला डाक्टर को सोची समझी साजिश के तहत अगुवा किया, जबरन शराब पिलाई, जबरन दुष्कर्म किया फिर सबूत मिटाने के लिये उसे जिन्दा जला कर हत्या कर दी….!
जरा गैर किजिये. हैदराबाद पुलिस ने इन चारो आरोपीओं को उस पुल के नीचे जहां एन्काउन्टर में ढेर किये जहां आरोपीओं ने पिडिता को जिन्दा जलाई थी. बात फैल गई. लोग पुल के उपर जमा हो गये. भारी भीड उमड पडी. पुलिस पुल के नीचे एन्काउन्टर के बाद की कारवाई कर रही छी की अचानक उन पर फूल बरसने लगे….! पुल पर खडे लोंगो ने एन्काउन्टर करनेवाले पुलिस पर फूल बरसा कर उनका स्वागत किया. मानो देर आये दुरस्त आये….! जी, हां यही प्रतिक्रिया दी हे सांसद और फिल्म अभिनेत्री जया बच्चन ने एन्काउन्टर की खबर सुनने के बाद.
कई नेता और सेलेब्स ने इस गेंगरेप के दोषियों के एन्काउन्टर को ले कर भिन्न भिन्न प्रतिक्रिया दी. मानो अपनी डफली अपना राग…..! दिन पर गेंगरेप कैा आरोप लगा उनके खिलाफ कोर्ट में कोइ चार्जशीट दायर हो या केस चले उससे पहले उनका काम तमाम करने वाले पुलिस पर फूल बरसना या बरसाना ये इस बात का गवाह है की भारत की न्याय प्रणालि और सरकारी सीस्टम कीतनी खोखली है….!
भारत में या विदेश में ऐसे मामले पहलीबार नहीं हुये. विदेश में ते न्याय प्रणालि ऐसी बनाई गइ है की वहां तारीख पे तारीख….तारीख पे तारीख….नहीं होता. अरब देशों मे ते कुढ ही घंटो में ऐसे मामलों में दोषियो को फांसी की सजा मिल जाती है. और सोने की चिडियावाले भारत में….?
दिसंबर 2012 में देश की राजधानी दिल्ही में चलती बस में एक मेडिकल छात्रा के साथ गेंगरेप हुआ था. इतनी दरिंदगी और हैवानियत की उसके नीजी अंग में लोहे का सरिया डाल दिया था. और फिर उसे चलती बस से कपडे उतार कर फेंक दी गई थी. इस गेंगरेप को निर्भया कांड नाम दिया गया था. पूरा देश हिल गया था इस दुष्कर्म की घटना की भयानकता देखकर. निर्भया को नहीं बचाई जा सकी. लेकिन उस पर गेंगरेप करनेवाले और अदालत से फांसी की सजा होने के बाद भी आज तक यानि 7 वर्ष तक वे जिन्दा है.
हो सकता है की उन्हें अभी तक जिन्दा देख कर हैदराबाद गेंगरेप के मामले में लोगो ने ये अवधारणा बनाई होगी की निर्भया कांड वाले को अभी तक फांसी नहीं मिल सकी तो हैदराबाद हैवानियत कांड में दोषीयों को कब फासी मिलेंगी…? पुलिस पर पुल पर से जो फूल बरसे वह इस कारण से बरसे की दोषीयों का तुरन्त सफाया….!
भारत के लोगों की ऐसी मानसिकता के लिये यदि कोइ जिम्मेवार है तो वे है राजनेता. सरकार में बैठे मंत्री-मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री. सिर्फ वर्तमान प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री नहीं लेकिन वे सभी जिन्हों ने ऐसे मामले में दोषीयों को जल्द से जल्द सजा देने के लिये कानून में ऐसा कोइ प्रावधान नहीं किया.
क्या ऐसा नहीं हो सकता या नहीं हो सकता था की निर्भया कांड के बाद गेंगरेप के केस में पकडे गये आरोपीओं के खिलाफ एक ही महिने में या ज्यादा से ज्यादा 6 महिने के भीतर ही केस पूरा हो और जजमेन्ट घोषित हो…
क्या ऐसा नहीं हो शकता या नहीं हो सकता था की यदि ऐसे मामले में लोअर कोर्ट ने आरोपीओं को दोषित करार कर फांसी की सजा दी हो तो उसके खिलाफ कीसी भी अदालत में कोइ अपील नहीं….एक ही जजमेन्ट फाइनल और सीधे उसका अमल करते हुये तुरन्त ही फांसी दी जाय….
हो सकता है और हो सकता था लेकिन नहीं हुआ….
क्योंकि फिर तो उन्नाव का कुलदिप सेंगर भी लपेटे में आ जाता…..
फिर तो चिन्मयानंद भी लटका दिया जाता….
फिर तो नित्यानंद भी भाग कर कैलाश नामक देश नहीं बना सकता था…..
फिर तो केरल के वह गिरजाघर का प्रिस्ट भी लटक जाता जिस के खिलाफ कुछ महिला नन ने दुष्कर्म की शिकायत दर्ज करवाई लेकिन न्याय नहीं मिला…..
फिर तो रामरहिम भी लटक जाता….
फिर तो वे सभी फटाफट फांसी के फंदे पर नजर आते जिनके खिलाफ ऐसे मामले आये….लेकिन सियासी क्षेत्र में कोइ नहीं चाहता की रेप या गेंगरेप के मामले में तुरन्त न्याय मिले.
सरकार चाहे तो सबकुछ संभव है. 1 जुलाई 2017 की आधी रात को आधा चंद्रमा टीमटीमा रहा हो तब संसद के द्वार खुलवाकर जीएसटी को लागू करने का काम हो सकता है….. रात के अंधेरे में नींद से जगा कर बेचारे राष्ट्रपति महोदय के हस्ताक्षर महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन दूर करने के लिये लिये जाते हो…… तो जिस देश की आधी आबादी महिलाओं की हो, उस देश की महिला को सुरक्षित बनाने के लिये दुष्कर्म के मामले में कठोर प्रावधान जो उपर दिखाये गये, उसके लिये कानून में संशोधन क्यों नहीं हो सकता…..?
कहते तो है की, मुझे जनता ने देश के हित में कठोर से कठोर निर्णय लेने के लिये फिर से सत्ता सौंपी है. तो फिर महिला के हित में ऐसा कठोर कानून क्यों नहीं की दुष्कर्म के केस का नियत समय में ही निपटारा हो, सजा का अमल नियत समय में ही हो. एक ही जजमेन्ट.. उसके उपर कोइ अपील वपील न हो… कोइ तारीख पे तारीख नहीं… फास्ट से फास्ट कोर्ट की रचना हो… और तुरन्त फांसी का प्रावधान किया जाता तो हैदराबाद के उस पुल से पुलिस पर फूल नहीं बरसते. क्योंकि लोगों को मालुम हो जाता कि आरोपी पकडे गये है तो तुरन्त ही न्याय होंगा.
लेकिन कीसी सरकार ने कलतक…आजतक… ऐसा नहीं किया. जो संसद में बैठे है आज उसमें से कितनों के खिलाफ दुष्कर्म जैसे संगीन अपराध दर्ज है…..? ऐसे संगन मामले दर्ज हो फिर भी उसे चुनाव में मिलती है टिक्ट. वे जीत भी जाते है. तो फिर यदि कठोर कानून बनेंगा तो तो राजनीतिक दलों को ये डर तो लगेंगा ही की यदि ऐसा करेंगे तो फिर तो अपने ही लटक जायेंगे…..! रहने दो. पुलिस को बोल देंगे की एन्काउन्टर में सजा दे देना. लोग भी खुश….पिडिता या उसके परिवारजन भी खुश….
मगर साहेबान, ये उपाय नहीं, अपनी चमडी बचाने की बात है. कठोर फैंसला नोटबंदी वाला नहीं हो सकता. कठोर फैंसला ये होता या अभी भी हो सकता है की लोगो को विश्वास हो कि दुष्कर्म के मामले में उसे चिंता करने की जरूर नही, क्योंकि सरकार ने कठोर से कठोर कानून बनाया है और पिडिता को न्याय मिल कर ही रहेंगा…..!
बरसों बीत गये ये गाते गाते कि- वो सुबह कभी तो आयेंगी…..कभी तो आयेंगी…..लेकिन तीन रंगा पंजा हो या केसरीलाल का फूल हो, वह सुबह नहीं आई…..
वो सुबह आ सकती है. लेकिन कैसे….?
उसके लिये सरकार में बैठे सियासी नेताओं में राजनीतिक इच्छाशक्ति-पोलीटीकल वीलपावर होनी चाहिये. क्या ऐसी कोई पोलीटीक्ल वील पावर है आजके 302 वाले “नये भारत” के भारतमाता के केसरी “लाल” में…..?

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