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किसानो की हाय मत लो..!!

एनसीपी के नेता शरद पवार महाराष्ट्र के किसानो की हालत को लेकर आज डेल्ही में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात करने से पहले शिवसेना ने सामना अखबार में महाराष्ट्र के किसानो की कितनी दयनीय हालत है और कितने किसानो ने अत्महत्या की उसके आंकडे जाहिर करके भाजपा सरकार को चेताया की, हमारा सरकार से इतना ही कहना है कि आत्महत्या कर रहे किसानों की हाय मत लो और जल्द-से-जल्द उन्हें सहायता देकर उनकी जान बचाओ।
किसानों की हाय मत लो!
पहले अकाल, फिर अतिवृष्टि के संकट ने महाराष्ट्र के किसानों का जीना मुहाल कर दिया। विशेषकर मराठवाड़ा से किसानों की आत्महत्यावाली खबरें मन को खिन्न करनेवाली हैं। मराठवाड़ा के हर जिले में आत्महत्याओं का दौर शुरू हो गया है। १४ अक्टूबर से ११ नवंबर के बीच मराठवाड़ा के ६८ किसानों ने अपनी इहलीला समाप्त कर ली। बीड जिले में महीने भर में १६ किसानों ने आत्महत्या की, नांदेड जिले में १२, परभणी जिले में ११, संभाजीनगर जिले में ९, लातूर में ७, जालना में ६, हिंगोली जिले में ४ और धाराशिव जिले में ३ किसानों ने आत्महत्या की है। विदर्भ की भी परिस्थिति इससे अलग नहीं है। बेमौसम बरसात के चलते पहले २० दिनों में विदर्भ के २९ किसानों ने आत्महत्या की। बुलढाणा और यवतमाल जिले में ये संख्या अधिक है। जनवरी से शुरू आंकड़े को देखें तो गत ११ महीनों में मराठवाड़ा में ७४६ और ८७७ यानी कुल १ हजार ६२३ किसानों के आत्महत्या की खबर है। किसानों का तनाव इतना असहनीय हो गया है कि उन्हें मौत ही इस संकट से निकलने का आसान रास्ता दिखाई पड़ता है। किसान आधुनिक प्रक्रिया का उपयोग करें, फसलों का नियोजन करें और उत्पादन दोगुना करें, जैसी बातें भाषण में ठीक हैं। लेकिन खेत में जो किसान मेहनत करता है उससे मिलने के बाद कागज के ये सुनहरे सपने नष्ट हो जाते हैं। किसानों को दोगुने उत्पादन की आवश्यकता होती है। लेकिन प्रकृति उसे दे तब न! कभी अकाल, कभी ओलावृष्टि और कभी अतिवृष्टि जैसे प्राकृतिक संकट किसानों पर आते रहते हैं। परिस्थिति का सामना न करते हुए किसान मौत को गले क्यों लगाते हैं, ऐसा सवाल जिनके मन में उठता है उन्हें किसानों की वित्तीय व्यवस्था और किसानों की परिस्थितियों को ठीक से समझ लेना चाहिए। किसानों को एक ही समय में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कभी बीज खराब निकलते हैं, कभी बरसात न होने की वजह से बुआई बेकार चली जाती है तो कभी दोबारा बुआई के संकट का सामना करने के लिए फसल बीमा हेतु लंबी कतार लग जाती है। नुकसान होने पर फिर से फसल बीमा की भरपाई हेतु कंपनी के कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। कृषि संबंधी सरकारी योजनाओं के लाभ की बात करें तो सरकारी दफ्तर में एक ही बार जाने से सारे काम कभी नहीं हो पाते। बैंकवाले दरवाजे पर खड़ा नहीं करते और पहले से ही लिए हुए कर्ज के कारण साहूकार के पास जा नहीं सकते, इस प्रकार की कई मुश्किलों का सामना किसानों को करना पड़ता है। इतना सब करने के बाद खेत में अगर अच्छी फसल हो भी गई तो हाल ही में आई बेमौसमी बरसात का संकट आता है और आंखों के सामने खड़ी फसल नष्ट हो जाती है। मध्य अक्टूबर से नवंबर के पहले हफ्ते तक बेमौसमी बरसात दानव बनकर आई और राज्य की फसलों को उद्ध्वस्त कर दिया। कटाई के लिए तैयार फसलें कीचड़ में तब्दील हो गईं। फलों के बाग नेस्तनाबूद हो गए। मुंह तक आया निवाला प्रकृति द्वारा छीन लिए जाने के कारण राज्यभर के किसान बड़ी मुसीबत में फंसे हुए हैं। नुकसान इतना बड़ा है कि इस आपत्ति से बाहर वैâसे आएं, परिवार वैâसे चलाएं और अगली फसल के लिए पैसा कहां से लाएं, इस प्रकार के कई सवालों के जंजाल में किसान उलझा हुआ है। राष्ट्रपति शासन की सरकार ने अभी तक बरसाती अकाल घोषित नहीं किया है, इसके अलावा राज्यपाल ने जो मदद घोषित की है वो इतनी कम है कि उससे किसानों को किसी भी प्रकार का ढाढ़स नहीं मिला है। पहले से ही सिर पर कर्ज के अलावा बरसात ने जो प्रचंड नुकसान किया है उसके कारण परेशान किसान रोज मौत की ओर बढ़ रहा है। गत एक महीने में ही मराठवाड़ा के ६८ किसानों ने आत्महत्या की है। विदर्भ के किसानों की आत्महत्या वाले आंकड़े भी चिंताजनक हैं। निराश किसान केंद्र सरकार की ओर बड़ी आशा के साथ देख रहा है। हमारा सरकार से इतना ही कहना है कि आत्महत्या कर रहे किसानों की हाय मत लो और जल्द-से-जल्द उन्हें सहायता देकर उनकी जान बचाओ।

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