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मोदी सरकार 2.0 के 100 दिन में बेहाल हुई इकोनॉमी

मोदी सरकार 2.0 ने एक बार फिर सत्ता में रहते हुए 100 दिन का कार्यकाल पूरा कर लिया है। ऐसे में पीएम मोदी के कामों की समीक्षा होने लगी है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था के हालात काफी खराब हैं। मोदी 2.0 सरकार की शुरुआत ही मंदी के संकेतों से हुई। ऑटो सेक्टर, रियल एस्टेट, टेलीकॉम, वित्तीय सेवाएं, बैंकिंग, स्टील, टेक्सटाइल, टी, डायमंड हर सेक्टर से नकारात्मक खबरें आ रही हैं। उत्पादन में कटौती हो रही है और नौकरियों पर कैंची चल रही है। सरकारी और निजी खर्च नहीं बढ़ रहा। हाल में आए जून तिमाही के लिए जीडीपी ग्रोथ का 5 फीसदी का आंकड़ा चिंता को और बढ़ाता है। हाल की मंदी की प्रमुख वजहें घरेलू मांग में कमी, निवेश में कमी, ऑटो सेक्टर में सुस्ती, विनिर्माण गतिविधियों (मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर) में गिरावट को माना जा रहा है। मोदी सरकार ने अगले 5 साल में देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है लेकिन जानकारों का कहना है कि 5 फीसदी के आसपास की जीडीपी पर इसे हासिल करने असंभव जैसा है। इसके लिए सालाना 8 से 9 फीसदी की जीडीपी ग्रोथ चाहिए।
आर्थ‍िक सुस्ती की एक बड़ी वजह देश के ऑटो सेक्टर का रिवर्स गियर में चला जाना है। कारों और अन्य वाहनों की बिक्री में गिरावट का सिलसिला अगस्त में लगातार 10वें महीने जारी रहा। अगस्त में कारों की बिक्री में 29 फीसदी की भारी गिरावट आई है। ऑटो सेक्टर से जुड़े साढ़े तीन लाख से ज्यादा कर्मचारियों की नौकरी चली गई है और करीब 10 लाख नौकरियां खतरे में हैं। कृषि क्षेत्र के बाद सबसे ज्यादा 10 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले टेक्सटाइल सेक्टर की भी हालत खराब है। नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन के अनुसार राज्य और केंद्रीय जीएसटी और अन्य करों की वजह से भारतीय यार्न वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा के लायक नहीं रह गया है। अप्रैल से जून की तिमाही में कॉटन यार्न के निर्यात में साल-दर-साल 34.6 फीसदी की गिरावट आई है। जून में तो इसमें 50 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है।
इसी तरह के हालात रियल एस्टेट सेक्टर में हैं, जिसकी हालत पिछले कई साल से खराब है। मार्च 2019 तक भारत के 30 बड़े शहरों में 12 लाख 80 हजार मकान बनकर तैयार हैं लेकिन उनके खरीदार नहीं मिल रहे यानी बिल्डर जिस गति से मकान बना रहे हैं लोग उस गति से खरीद नहीं रहे। RBI द्वारा हाल में ही जारी आंकड़ों के मुताबिक बैंकों द्वारा उद्योगों को दिए जाने वाले कर्ज में गिरावट आई है। पेट्रोलियम, खनन, टेक्सटाइल, फर्टिलाइजर और टेलीकॉम जैसे सेक्टर्स ने कर्ज लेना कम कर दिया है। अप्रैल से जून 2019 की तिमाही में सोना-चांदी के आयात में 5.3 फीसदी की कमी आई है जबकि इसी दौरान पिछले साल इसमें 6.3 फीसदी की बढ़त देखी गई थी।
केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2018-19 में देश की जीडीपी विकास दर 6.8 प्रतिशत रही जो बीते 5 साल में सबसे कम है। इस वित्त वर्ष की जून तिमाही में तो जीडीपी ग्रोथ लुढ़ककर 5 फीसदी पर आ गई है। आरबीआई ने हालात को देखते हुए साल 2019-20 के लिए विकास दर का अनुमान घटाकर 6.9 फीसदी कर दिया है।देश में कर सुधारों के तहत 2017 में जीएसटी को लागू किया गया। तब इसे देश के टैक्स सिस्टम के इतिहास का एक बड़ा रिफॉर्म मानकर पेश किया गया था। बाद के वर्षों में इसमें कई बदलाव भी किए गए लेकिन जिस रिफॉर्म को सरकार अपनी आमदनी का जरिया मान रही थी उससे आमदनी कम होती जा रही है। राजस्व विभाग की ओर से जारी आंकड़ों में पता चला कि अगस्त महीने में जीएसटी कलेक्शन फिर 1 लाख करोड़ रुपए ने नीचे रहा है। जुलाई 2019 में यह राशि एक लाख करोड़ रुपए रही थी।

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