नक्सलियों से संपर्क रखने और गैरकानूनी गतिविधियों के आरोप में अरेस्ट किए गए ऐक्टिविस्टों के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में १९ सितम्बर तक के लिए सुनवाई टल गई है । ऐसे में अरेस्ट किए गए ५ माओवादी शुभचिंतकों को दो और दिन तक हाउस अरेस्ट रहना होगा । इससे पहले सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इनसे देश में शांति भंग का खतरा है । इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ५ आरोपियों के खिलाफ पुणे पुलिस की ओर से जुटाई गई सामग्री की जांच करने की बात कही ।
राज्य सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता तुषार मेहता ने कहा, आरोपी केवल भीमा कोरेगांव के मामले में गिरफ्तार नहीं हुए हैं, आशंका है कि वो देश में शांति भंग करने के प्रयास में भी है । दूसरी तरफ इन आरोपों का खंड करते हुए बचाव पक्ष के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि इस मामले की एसआईटी से जांच होनी चाहिए या फिर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इन्वेस्टिगेशन होनी चाहिए । केस की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, हम किसी अतिवादी प्रचार के साथ नहीं हैं, लेकिन यह देखना चाहते हैं कि मामला सीआरपीसी के तहत या फिर संविधान के अनुच्छेद ३२ से जुड़ा है या नहीं । केंद्र की ओर से पेश अधिवक्ता महिंदर सिंह ने कहा, माओवादियों का खतरा देश में दिन प्रति दिन बढ़ रहा है । ये आरोपी लोग असामाजिक गतिविधियों को बढ़ाने में शामिल हैं और इनसे देश को खतरा है । महिंदर सिंह ने ऐक्टिविस्टों की ओर से सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल किए जाने को लेकर कहा, उनके पास लोअर कोर्ट और हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने का विकल्प था । इसके अलावा अपनी बात रखने के अन्य विकल्प भी उनके पास थे । ऐसे में सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख करने की क्या वजह थी । इसके जवाब में अभिषेक सिंघवी ने कहा, हम सीधे सुप्रीम कोर्ट इसलिए आए हैं क्योंकि इस केस में हम कोर्ट की निगरानी में जांच चाहते हैं या फिर सीबीआई एवं एनआईए की ओर से इन्वेस्टिगेशन की मांग करते हैं ।