गुजरात विधानसभा चुनाव में एक दूसरे को पराजित करने की रणनीति पर बीजेपी और कांग्रेस सभी कोशिश कर रही है । शहरी और ग्राम्य इलाकों में किसकी कितनी पकड दिख रही है इस बारे में भी अपनी अपनी ओर से मूल्यांकन किया जा रहा है । पिछले छह चुनावों पर निगाहे की जाए तो सरलता से जाना जा सकता है कि शहरी इलाकों में बीजेपी का प्रभुत्व रहा है । जब तक शहरी इलाकों में कांग्रेस पार्टी बीजेपी तरह ही सफलता हांसिल नहीं करती तब तक वह बीजेपी को हरा नहीं सकती । जानकार लोग भी यह बात स्वीकार करते हैं । साल २००७ तक सभी २८ सीटों और साल २००७ के बाद सीमांकन के बाद सीटों की संख्या बढी है । फिर भी बीजेपी ने अपना प्रभुत्व कायम रखा है । सीमांकन के बाद साल २०१२ के चुनाव में बीजेपी ने कुल ३९ सीटों में से ३५ सीटों पर जीत दर्ज की थी । दूसरी और कांग्रेस पार्टी को सिर्फ चार सीटों से संतोष करना पडा था । इन चार सीटों में अहमदाबाद में दो और जामनगर -राजकोट में कांग्रेस को एकएक सीट मिली थी । हकीकत में साल १९९० बाद से ही कांग्रेस पार्टी की हालत खराब होने लग गई थी । साल १९९० में जब बीजेपी ने कुल १८२ विधानसभा सीटों में से १४३ सीटों पर चुनाव लडा तब भी १८ सीटें जीती थी । कांग्रेस पार्टी की शहरी इलाकों में दुर्दशा १९९० से शुरु हुई और साल २०१२ तक जारी रही है । साल १९९० में कांग्रेस पार्टी को सिर्फ चार सीटें मिली थी । जनता दल को सात सीटें मिली थी । साल २००७ की बात की जाए तो कांग्रेस पार्टी को सिर्फ छह सीटें मिली थी । अहमदाबाद, बडौदा, सूरत, राजकोट, जामनगर, भावनगर, जूनागढ, गांधीनगर में बीजेपी का प्रभुत्व रहा है । इन सभी म्युनिसिपल कार्पोरेशन में मजबूत स्थिति लगातार बढी है । साल २०१७ में यदि बीजेपी की जीत होगी तो भी इसमें गुजरात के आठ बडे शहरों की भूमिका अहम रहेगी । बीजेपी इन सभी आठ म्युनिसिपल कार्पोरेशन में शासन कर रही है । २०१५ में जब स्थानिक चुनाव गुजरातभर में हुए तब कांग्रेस ने जिला-तहसील पंचायतो में सफलता हांसिल की थी किन्तु म्युनिसिपल कार्पोरेशन में उसे बडी सफलता नहीं मिली थी । बीजेपी की और से शहरी इलाकों में लोगोंने विश्वास जगाए रखने में सफलता मिली है । शहरी इलाकों में साल १९९० के बाद से अच्छे कार्यकर्ता की वजह से बीजेपी मजबूत स्थिति में रही है । शहरी इलाकों में कांग्रेस पार्टी के लिए अब भी मुश्किल बनी हुई हैं । कांग्रेस के लिए यह बडी चुनौती है ।