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त्रिपल तलाक : रोक के लिए शीतकालीन सत्र में बिल आएगा

एक साथ तीन तलाक पर रोक लगाने के लिए केन्द्र सरकार कानून बनाने पर विचार कर रही है । टीवी रिपोट्‌र्स के मुताबिक मोदी सरकार शीतकालीन सत्र में तीन तलाक पर रोक लगाने के लिए विधेयक पेश कर सकती है । पिछले दिनों ही सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक पर रोक लगाते हुए सरकार को कानून बनाने की सलाह दी थी । आधिकारिक सुत्रों ने बताया है कि विधेयक तैयार करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है । जजों ने माना था कि यह पाप है । इसलिए सरकार को इसमें दखल देना चाहिए और तलाक के लिए कानून बनना चाहिए । दोनों ने कहा कि तीन तलाक पर छह महीने का स्टे लगाया जाना चाहिए । इस बीच में सरकार कानून बना ले और अगर छह महीने में कानून नहीं बनता है तो स्टे जारी रहेगा । खेहर ने यह भी कहा कि सभी पार्टियों को राजनीति को अलग रकखर इस मामले पर फैसला लेना चाहिए । शायरा बानो बनाम यूनियन ओफ इंडिया और इससे जुडे दूसरे मामलों (डबल्युपी (सी)नं. ११८/२०१६) में २२ अगस्त २०१७ को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में मुस्लिम पतियों द्वारा अपनी पत्नियों को तीन तलाक देने पर रोक लगा दी थी । देश के पर्सनल लोज में यह फैसला वास्तव में एक टर्निंग पोइंट है । यह फैसला संविधान के अनुच्छेद १४ के तहत प्रत्येक व्यक्ति को मिले समान अधिकार और समान सुरक्षा को कायम रखता है, भले ही व्यक्ति अस्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक । इस फैसले के बाद अब महिलाओं को तलाक-ए-बिद्दत की व्यवस्था में छुटकारा पाने में काफी मदद मिलेगी । गौरतलब है कि इस एक तरफा व्यवस्था में पति बडी आसानी से तीन तलाक दे देते थे और महिलाएं कुछ नहीं कर पाती थी । सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद से ऐसा माना जा रहा था कि सरकार जल्द ही कानून बनाने की दिशा में आगे बढ सकती है । कानून बनने के बाद एक बार में तीन तलाक अपराध की श्रेणी में आ जाएगा । महत्वपूर्ण बात यह है कि पर्सनल लो में सुधार की मांग मुस्लिम समुदाय की ओर से ही उठाई गई थी । वैसे सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद भी तलाक-ए-बिद्दत के द्वारा तलाक देने के कई मामले सामने आए हैं । मुस्लिम पतियों को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की जानकारी नहीं होने के कारण ऐसा हो सकता है । इस तरह से तलाक देने पर दंडित किए जाने का प्रावधान नहीं होने के कारण भी ऐसे हो सकता है । मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा विरोध करने के बावजूद तलाक-ए-बिद्दत के जरिए तलाक देने के चलन में कोई कमी नहीं आई हैं । हाल ही में खबर आई थी कि एक बडे शैक्षणिक संस्थान से जुडे एक शख्स ने वॉट्‌सएप और एसएमएस से अपनी पत्नि को तलाक दे दिया था । इसके बाद पत्नि ने पुलिस से इसकी शिकायत की थी । माना जा रहा है कि देश में ऐसे कई मामले हो सकते हैं, जो सामने नहीं आए हों । मौजूदा कानून के तहत तलाक-ए-बिद्दत के पीडितों के पास पुलिस के पास जाकर शिकायत दर्ज कराने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है क्योंकि मौलवी भी उनकी कोई मदद नहीं करते हैं । कानून में प्रावधान नहीं होने के कारण पुलिस भी ऐसे पतियों के खिलाफ कोइ कडा कदम नहीं उठा पाती है ।

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