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दागी नेताओं की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बने : सुप्रीम

देश की सबसे बड़ी अदालत में चुनाव आयोग ने सजायाफ्ता सांसदों-विधायकों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध की वकालत की है । चुनाव आयोग ने बुधवार को एक याचिका पर सुनवाई के दौरान अपने जवाब में कहा कि सजायाफ्ता सांसदो और विधायकों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगना चाहिए । सर्वोच्च न्यायालय ने भी मामले की गंभीरता को देखते हुए स्पेशल कोर्ट में इन केसों की सुनवाई की बात की । सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, दागी नेताओं के केस की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बनने चाहिए और इसमें कितना वक्त और फंड लगेगा यह ६ हफ्तों में बताएं । पहले केंद्र सरकार ने कहा, हम स्पेशल कोर्ट के लिए तैयार हैं पर यह राज्यों का मामला है । इस पर कोर्ट ने कहा कि आप सेंट्रल स्कीम के तहत स्पेशल कोर्ट बनाने के लिए फंड बताये कि कितना लगेगा । मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने याचिककर्ता को फटकार भी लगाई । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्पेशल कोर्ट में स्पीडी ट्रायल होगा और केंद्र से कहा कि आप बताएं इसमें खर्च कितना होगा । कोर्ट ने कहा, इसके बाद हम देखेंगे कि जजों की नियुक्ति और इन्फास्ट्रक्चर कैसे होगी । कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पुछा कि बिना डेटा के आपने याचिका कैसे दाखिल कर दी । क्या आप हमसे चाहते हैं कि हम केवल कागजी फैसला दे दें और कह दें कि भारत में राजनीति का अपराधीकरण हो चुका है । सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका पर मंगलवार को भी बहस हुई थी । सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामलों में नेताओं को दोषी ठहराने की दर की जानकारी मांगी थी । सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी पुछा था कि क्या इनके खिलाफ मुकदमों की सुनवाई एक साल के भीतर पुरा करने के उसके निर्देशों पर प्रभावी तरीके से अमल हो रहा है । जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस नवीन सिन्हा की दो सदस्यीय बैंच ने कहा था कि आपराधिक मामलों में राजनीतिक व्यक्तियों की दोष सिद्धि की दर एक नया आयाम खोलेगी । बेंच ने जानना चाहा कि यदि विधि निर्माताओं के खिलाफ मुकदमे की सुनवाई एक साल के भीतर पुुरी होती है तो क्या यह निवारक कदम होगा । पीठ ने कहा, हम यह भी जानना चाहते है कि दोषसिद्धि की दर क्या है । यह एक नए आयाम पर रोशनी डालेगा । हम देखेंगे कि राजनीतियों के खिलाफ आपराधिक मामलों की परिणति दोष सिद्धि में नहीं होती है तो क्यों इसके कारण क्या है । शीर्ष अदालत ने दोषी ठहराया राजनीतिज्ञों को सजा पुरी होने के बाद छह साल के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य बनाने वाले जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान को असंवैधानिक करार देने के लिये वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणीयां की । बेंच ने सुनवाई के दौरान ही इसमें हस्तक्षेप करने वाले एक व्यक्ति की और से पेश वकील से निचली अदालतों और उच्च न्यायलयों में विधि निर्माताओं के खिलाफ लंबित मुकदमों का आंकड़ा मांगा और यह भी जानना चाहा कि क्या इनमें से किसी पर कोई रोक लगी है । इस वकील ने बैंच से कहा कि यह एक महत्वपूर्ण पहलू है और वह राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड और निर्वाचन आयोग के पास उपलब्ध आंकड़़ो के विवरण के साथ हलफनामा दाखिल करेंगे । इस पर बेंच ने टिप्पणी की, हम नहीं समजते कि निर्वाचन आयोग के पास से ये आकड़े एकत्र करना आसान होगा क्योंकि मुकदमे निचली अदालतों और विभिन्न न्यायालयों में लंबित है । इस मामलें में केंद्र ने अपने हलफनामें में कहा था कि सांसदो-विद्यायकों को दोषी ठहराए जाने की स्थिति में उन पर उम्र भर के लिए प्रतिबंध लगाने का अनुरोध विचार योग्य नहीं है । केंद्र ने इसी तर्क के आधार पर याचिका खारिज किए जाने की भी मांग की थी । याचिका में चुनाव लड़ने वाले व्यक्तियों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता और अधिकतम आयु सीमा निर्धारीत करने के लिए केंद्र और निर्वाचन आयोग को निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है ।

 

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