राजनीतिक रुप से संवेदनशील ६४ करोड़ रुपये के बोफोर्स दलाली मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया हैं । खबर हैं कि सीबीआई इस दशकों पुराने बोफोर्स मामले की दोबारा जांच कर सकती हैं । सीबीआई ने संसदीय समिति से कहा है कि बोफोर्स मामले को दोबारा खोला जा सकता हैं । इसके लिए सरकार की हरी झंडी का इंतजार हैं । कानून मंत्रालय को अब इस पर फैसला लेना हैं । पिछले महीने इस संसदीय समिति में से अधिकांश का मानना था कि सीबीआई मामले की जांच फिर से शुरु करे और इसे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश करे । छह सांसदों के पैनल के सामने पुरानी रिपोर्ट रखी है जो १९८६ में बोफोर्स सौदे के लिए बनाई गई थी । बोफोर्स मामले ने १९८० मंे राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार को तबाह कर दिया था और सत्ता में आने की पार्टी की संभावनाओं को बर्बाद कर दिया । इस केस को सबसे पहले १६ अप्रैल १९८७ को स्वीडिश रेडियो सामने लाया था । इसमें स्वीडिश डिफेंस मेन्युफेक्चरर द्वारा अपनी तोप बेचने के बदले राजीव गांधी समेत अन्य लोगों को मोटी रिश्वत देने का आरोप था । हाईकोर्ट ने कहा है कि राजीव गांधी ने रिश्वत ली थी , इसका कोई सबूत नहीं हैं । पैनल के सदस्यों ने सीबीआई से आग्रह किया कि सीबीआई सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके इस केस को सरकार से फिर खोलने की मांग करे । सीबीआई ने संकेत दिया है कि वह सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका का समर्थन कर सकती हैं । जो मामले को रद्द करने के फैसले को चुनौती देती हैं । हाल ही में इस मामले में जल्द सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर भी किया गया था । यह आवेदन उस वक्त दायर किया गया था जब एक रिपोर्ट में १९८६ के १४३७ करोड़ रुपये के होवित्जर तोप सौदे के लिए वित्तीय लाभ पहुंचाने और हासिल करने की बात कही गई थी ।
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