शहर में पिछले कई सालों से धारा 144 लागू करने के खिलाफ गुजरात उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है। IIM अहमदाबाद और अहमदाबाद विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर सहित कुल 4 व्यक्तियों द्वारा CRPC की कॉलम 144 को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की गई थी। इस पीआईएल को लेकर गुजरात हाईकोर्ट के जज एस एच वोरा ने महत्वपूर्ण अवलोकन करते हुए कहा कि शहर में पिछले तीन सालों से 144 लागू करने का मतलब है कि लोग यहां सुरक्षित नहीं। इतने लंबे समय से धारा 144 लागू क्यों? अवलोकन के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले को लेकर सरकार को दो दिनों के भीतर जवाब देने को आदेश दिया है।
मामले का संज्ञान लेते हुए, उच्च न्यायालय अवलोकन करते हुए कहा कि, धारा 144 क्यों लागू किया गया है? इसे रिकॉर्ड करना आवश्यक है। अगर 4-5 लोग फुटपाथ या पान की दुकान पर एक साथ खड़े रहने की इच्छा रखते हैं तो धारा 144 के लागू होने की डर से वह एक साथ रहने में डरते हैं। इस मामले को लेकर सरकारी वकील मितेश अमीन ने तर्क देते हुए कहा कि पुलिस ने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने के लिए कुल 107 बार अनुमति दी है।
गुजरात हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल करने वाले याचिकाकर्ता के वकील मिहिर जोशी ने दलील देते हुए कहा कि पिछले 3 वर्षों से बिना किसी वजह के धारा 144 लागू की गई है। पुलिस की और से लागू इस आदेश को प्रकाशित भी नहीं किया गया है। ऐसे में जब IIM के बाहर CAA-NRC के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से छात्र विरोध प्रदर्शन कर रहे थे तो उन्हे हिरासत में लिया गया था। धारा 144 को लगातार लागू करना संविधान के अनुच्छेद 19 (1) का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने धारा 144 के आदेश को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय से हस्तक्षेप करने की मांग की है। आवेदक ने आरोप लगाते हुए कहा कि पुलिस किसी भी समय इस तरह के नए आदेश जारी कर देती है। जिससे लोगों की बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी को बड़ा खतरा है। इस कानून के लागू होने पर शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन भी नहीं कर सकते. इतना ही नहीं लगातार धारा 144 लागू होने के बाद शहर में भय के माहौल का संदेश जाता है।
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