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शर्म आती है ऐसे नेता पर और सीना चौड़ा होता है मेरे ऐसे जाँबाज जवानों पर..!

देश में मानसून जोरो पर है। कर्नाटक, केरल, आसाम,अरुणाचल, बिहार और फिर महाराष्ट्र-गुजरात में भारी बारिश के चलते तबाही मची है। मुंबई में भी बाहरी बारिश से लाखो लोग परेशान हुए, मानो मायानगरी थम सी गई। बाढ़ के ऐसे हालात में लोगो को बचाने के लिए NDRF की सेवाए ली गई। वायुसेना को भी राहत कार्य में लगाये गये। केरल में हालात इतने ख़राब थे की सेना के जवानो को मैदान में उतारे गये। गुजरात के मोरबी में एक पुलिस कर्मी ने बाढ़ के कमर तक पानी में चलकर अपने दोनों कंधो पर दो बच्चियों की जान बचाई बह वीडियो और सेना द्वारा बचाए गये लोगो को नाव में बिठाकर ले जाते वक्त एक महिला ने सेना के जवानो के पैर छू कर उन्हें साक्षात भगवान् मानकर रो पड़ी ये सब विडियो ने पत्थर दिलो को भी रुला दिया।
एक ओर पुलिस और जवान जान पर खेल कर लोगो की जान बचा रहे थे तब महाराष्ट्र के एक मंत्री ने बाढ़ग्रस्त क्षेत्र की मुलाक़ात के दौरान नाव में बैठे बैठे सेल्फी खींचते नजर आये। क्या ये कोई सेल्फी खीचने का समय था या लोगो के आंसू पोंछने का….? ऐसे हालत में बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में सेल्फी लेते हुए मंत्री को जरा भी शर्म नहीं आई। यदि शर्म आती तो वह सेल्फी वाली अपनी फोटो शेर नहीं करते। महाराष्ट्र भाजपा या सीएम द्वारा उस मंत्री को फटकार लगाई गई हो ऐसा तो मालुम होता नजर नहीं आ रहा। लोग बाढ़ में डूब रहे हो और मंत्री लाइफ जेकट पहन कर सेल्फी ले रहे है….! वाह…मंत्री…वाह….! यदि उन्हें ज़रा भी शर्म आ रही हो तो अब भी वक्त है की वह बाढ़ग्रस्त लोगो से माफ़ी मांगे।
सोश्यल मिडिया के युग में गुजरात के उस पुलिस की जम कर तारीफ़ हुई जिसने बाढ़ के पानी में वासुदेव बन कर एक नन्ही बच्ची को सर पर टोकरे में बिठाकर जान की बाजी लगाकर बचाई। क्योंकि पानी उनके गले तक था और कुछ भी हो सकता था। दो बच्चियों को बचानेवाले पुलिस को सलाम इस लिए भी है की उन्हें पता ही नहीं था की उसके पैर के नीचे सड़क है, गढ़ा है या कीचड़ है। वह तो बस जान पर खेल कर बाढ़ के पानी को चीरता हुवा आगे बढ़ रहा था। ऐसा जज्बा बहोत कम देखने को मिलता है। कहा ये पुलिस, कहा सेना के वे जवान जिसे लोग भगवान् मानकर उनके पैर छू रहे है और कहा वे मंत्री जो मानो नाव में बैठकर घुमने निकले हो ऐसा मानकर सेल्फी से खेल रहे थे। ये फर्क है नेता और सेना के बिच। बड़े बड़े कार्पोरेट कंपनियों ने राजनितिक दलों को थैले के थैले भरकर चुनावी बांड से उन्हें खुश किये उस कंपनियों में वाकई समाज की जिम्मेवारी हो तो इन कर्तव्यनिष्ट कर्मी और सेना के जवानो का सन्मान करना चाहिए। ऐसे मौके बार बार नहीं आते। देश में कार्यरत एनजीओ को भी ऐसे नव जवानो का सन्मान करना चाहिए। सलाम इन जवानो को जो देवदूत बनकर आये और कइयो की जान बचाई। सेल्यूट है….हमे नाज है तूम पर….!

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