लगातार ८ महीनों से कारों की बिक्री में गिरावट दर्ज की जा रही है । जून महीने में यात्री कार बनाने वाली प्रमुख ११ में से ९ कंपनियों की बिक्री में दोहरे अंकों की गिरावट आई । ऐसी हालत तब है जब कंपनियां कारों के दाम पर भारी छूट दे रही है और नए-नए मॉडल की कारें लॉन्च भी बाजार में उतार रही हैं ऑटो इंडस्ट्री के एक्सपर्ट्स कारों की बिक्री में लंबे समय से चली आ रही मंदी को बिल्कुल अप्रत्याशित मान रहे हैं । ऐसा २५ सालों में पहली बार देखने को मिल रहा है । सवाल उठता है कि आखिर लोग कार खरीदने से क्यों बच रहे हैं?
कई लोगों को लग सकता है कि इसका एक कारण हाल ही में हुआ चुनाव हो सकते हैं, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है क्योंकि कारों की बिक्री में गिरावट थम नहीं रही है ।
दरअसल, अर्थव्यवस्था की आंतरिक कमजोरी, नौकरियां जाने का दबाव और कर्ज संकट का असर वीइकल इंडस्ट्री पर दिख रहा है । ध्यान रहे कि वाहनों की बिक्री को अर्थव्यवस्था का मुख्य संकेतक की (की इंडिकेटर) माना जाता है । थर्ड पार्टी प्रीमियम में वृद्धि और नई कार के लिए तीन साल का इंश्योरेंस लेने की अनिवार्यता के कारण कार की लागत बढ़ गई है । दूसरी तरफ, ढ्ढरुऱ्स्नस् के कर्ज संकट और कर्ज देने के नियम कठोर होने के बाद से ऑटो लोन जारी करने की रफ्तार भी प्रभावित हुई है । वित्त वर्ष २०१८-१९ में करीब १.९ लाख करोड़ रुपये ऑटो लोन के रूप में बांट गए थे, लेकिन पिछली तिमाही में इसमें १० से १२ प्रतिशत की कमी रहने का अनुमान है । कार कंपनियों ने जीएसटी रेट भी २८ प्रतिशत से घटाकर १८ प्रतिशत करने की मांग की है । एक्सपर्ट्स का मानना है कि शेयर बाजार और जमीन -जायदाद तथा मकानों की बिक्री से से बढ़िया लाभ नहीं मिलना भी कार की घटती बिक्री का कारण है । एक्सपर्ट्स कहते हैं कि सेंसेक्स से कितना रिटर्न मिल रहा है उसका यात्री कारों की बिक्री से गहरा संबंध होता है । समस्याओं में इजाफा पिछले दो वर्षों से कृषि से होने वाली आय में गिरावट के कारण भी हुआ है ।
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