कहते है की सरकार चुनी हुई पार्टी नहीं चलाती लेकिन IAS-IPS स्तर के बडे बडे अफसर चलाते है। उनका चयन कडी परिक्षा के बाद होता है और मसूरी में स्थित लालबहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी में उन्हें सरकार चलाने की तालीम दी जाती है। वहां से शिख कर वे भिन्न भिन्न राज्यो में जाते है और कलेक्टर या सचिव आदि बन के सरकार चलाते है। वे पांच साल के लिये नहीं होते। चुनी गइ पार्टी की सरकार पांच साल के लिये होती है लेकिन आइएएस अफसर अवकाशप्राप्त आयु तक सरकार में रहते है और चुनी गइ पार्टी की सरकार को चलाते है। वैसे ही एक महिला आइएएस अफसर है निधि चौधरी। महाराष्ट्र केडर में है। उन्हों ने tweet में यह कह कर अपना असली रूप बताया की गांधीजी का फोटो नोट से हटावो…गांधीजी की मूर्तियां हटावो…उनके नाम से सडकें है वह भी हटावो..उनकी कोइ जरूरत नहीं, 30-1-1948 के लिये थेंकस गोडसे…!! पढा न आपने….निधि कोइ सियासी नेता नहीं। निधि कोइ प्रज्ञा साध्वी नहीं। निधिजी एक ऐसी अफसर है जिसका चयन युपीएससी ने कीतनी ही कसौटीयां ले कर उन्हें पास किया और मसूरी के अकादमी में उन्हें सरकार चलाने की तालीम दी गइ। सवाल ये है की क्या निधिजी को मसूरी की अकादमी में यही सिखाया गया की गांधीजी नहीं लेकिन उनके हत्यारे गोडसे महान है…?
आखिर वो क्या होता है जिससे ऐसे आला अफसर ऐसा अपना असली रूप बताते है…? क्या निधि संघी है…? क्या वे गोडसे परिवार से है…? निधि 2012 की बेच की है। इसलिये हो सकता है की उन पर गोडसे महामंडन का रंग चढा हो। क्योंकी गोडसे भक्ति पिछले कुछ ही वर्षो में बढी है। ये बढते बढते यहां तक पहुंच गइ की गोडसे को महान राष्ट्र भक्त बतानेवाली चुनाव में जीत जाती है..! वे अब कानून बनानेवाली संसद में बैठेंगी और कानून बनायेंगी जब की उन पर कानून तोडने का संगीन आरोप है। गोडसे की बात निकली तो ये साध्वीजी को तो याद करना ही चाहिये। और जब ऐसे कीसी आला अफसर की बात चलेंगी तो निधि चौधरी को भी याद करना पडेंगा अब..! गांधीजी के बारे में ऐसी नकारात्मक सोच रखनेवाली निधि चौधरी एक अकेली नहीं हो सकती। लगता है की पूरी नस्ल और फसल उगाइ गइ है गोडसे का महिमा गाने के लिये। महाराष्ट्र सरकार ने विवाद बढने के बाद सिर्फ उनका तबादला कर दिया। उनके खिलाफ कोइ अनुशासनात्मक कार्यवाई शायद नहीं की होंगी क्योंकी सरकार में बैठे लोगों की मानसिक्ता सब जानते है।
गांधीजी से भाजपा और संघ परिवार बैर रखे तो माना की वे पहले से ही उनके खिलाफ है। लेकिन निधि चौधरी जैसे आला अफसर गोडसे को पूजे तो वे सरकार में किसका भला करती होंगी…? गांधीजी के नामसे चलती मनरेगा योजना में उन्होंने कितनों को रोजगारी के अवसर दिये होंगे…? ये एक टेस्ट केस होना चाहिये। सरकार तो नहीं करेंगी लेकिन मनोवैज्ञानिकों को इसका अध्ययन करना चाहिये की निधि जैसे आला अफसर को किस आधार पर परीक्षा में चुना गया…? वाइवा टेस्ट में उन्हे गाधीजी के बारे में भी कुछ तो पूछा गया होंगा तो उसका क्या जवाब दिया होंगा ये भी जानना चाहिये। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी ने शपथ लेने से पहले गांधीजी की समाधि पर जा कर नमन किया और केन्द्र के अधिन आनेवाली अफसर ने गांधीजी की मूर्तियां हटाने की मांग की। ये एक खतरनाक सोच है। इसे अर्बन गोडसेनक्सली नाम देना होगा। ये एक भयानक वायरस है। जो गांधीजी के गुजरात में भी पहुंच चुका है। गोडसेनक्सली खतरनाक विचार रखनेवालों को सरकार सबक शिखायें। भारत में गोडसेनक्सली नकारात्मक विचार ने जन्म ले लिया है। उसे कुचला नहीं गया तो क्या होगा…? कइ निधियां पनपेंगी और गांधी विचार को खोखला कर देंगी। हे राम, निधि जैसे को माफी नही मिलनी चाहिये, क्योंकी वे भली भांति जानती है की उन्हों ने क्या लिखा…क्यों लिखा और विवाद बढे तब क्या करना…! निधि विचार, निजी विचार नहीं है ये साबित हो चुका है। चलियें निधिजी, सब से पहले आपके महाराष्ट्र में गांधी का पूतला तोडा जाय…? क्या आप तैयार है…?!