सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतें पत्नी को रखने के लिए पति को मजबुर नहीं कर सकती है । कोर्ट ने पेशे से पायलट एक व्यक्ति को अलग रह रही पत्नी और बेटे की परवरिश के लिए १० लाख रुपये अंतरिम गुजारा भत्ता के तौर पर जमा कराने के लिए कहा है । शीर्ष अदालत ने मद्रास हाईकोर्ट के उस जमानत आदेश को बहाल कर दिया है जिसे पति द्वारा सुलह समझौता मानने से इनकार करने के कारण रद्द कर दिया गया था । न्यायमूर्ति आदर्श गोयल और न्यायमूर्ति यूयू ललित ने कहा, कोर्ट किसी पति को पत्नी को रखने के लिए मजबुर नही कर सकते । यह मानवीय रिश्ता है । आप व्यक्ति निचली अदालत में १० लाख रुपये जमा कराएं जिसे पत्नी अपनी फौरी जरूरतो को पुरा करने के लिए बिना शर्त निकाल पाएगी । जब व्यक्ति के वकील ने कहा कि राशि को कम किया जाए तो पीठ ने शीर्ष न्यायालय परिवार अदालत नहीं है और इस पर कोई बातचीत नहीं हो सकती है । पीठ ने कहा, अगर आप तुरंत १० लाख रुपये जमा कराने के लिए राजी हैं तो जमानत आदेश को बहाल किया जा सकता है इसके बाद वकील १० लाख रुपये जमा कराने के लिए राजी हो गया, लेकिन थोड़ा वक्ता मांगा, पीठ ने कहा, हम याचिकाकर्ता की और से दिए गए बयान के मद्देनजर जमानत के आदेश को बहाल करने को तैयार हैं कि याचिकाकर्ता चार हफ्ते के अंदर १० लाख रुपये जमा कराएगा ।
આગળની પોસ્ટ