जिस मेक इन इंडिया कैंपेन को केंद्र सरकार ने जोर-शोर से शुरु किया था, उसके तहत देश की रक्षा के लिए तैयार किए जाने वाले हथियार और जरूरी सामानों का उत्पादन ही नहीं हो पा रहा है । इसके पीछे कई वजहें हैं, जिनमें लालफीताशाही, लंबी प्रक्रियाएं, कमर्शल और तकनीकी दिक्कतों के अलावा राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी मुख्य वजहें है । नतीजा यह हुआ है कि पिछले ३ सालों में अभी तक कोई भी बड़ा रक्षा प्रोजेक्ट पूरा नही हो पाया है । इन आधा दर्जन बड़े प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत ३.५ लाख करोड़ रुपए है । इन प्रोजेक्ट्स में फ्यूचर इन्फैंट्री कॉम्बैट वीइकल्स, लाइट युटिलिटी हेलिकोप्टर्स, नेवल मल्टी-रोल चोपर्स, जनरल स्टेल्थ सबमरीन, फिक्थ जेनेरेशन फाइटर एयरक्राफ्ट, माइन काउंटर मेजर वेसेल्स शामिल है । इतनी ही नहीं तेजस की सफलता के बाद ११४ सिंगल इंजल फाइटर्स के लिए भी रिक्वेस्ट फोर अनकर्मेशन जल्द ही जारी होने वाला हैं । उधर स्वीडन के अमेरिका के एफ-१६ जेट में से भारत जिसे भी कोन्ट्रैक्ट देगा, उसकी कीमत लगभग १ लाख करोड़ होगी । ऐसे में तय है कि फंड की कमी के चलते इन प्रोजेक्ट्स में और लेटततीफी होगी । हालांकि रक्षा मंत्रालय से जुडे़ अफसरो ने बताया कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन हर दुसरे हफ्ते रक्षा प्रोजेक्ट से जुड़ी मीटिंग्स कर रही हैं जिससे जल्द से जल्द इन प्रशासनिक अड़चनों को दुर किया जा सके । एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, यह बड़े और जटिल प्रोजेक्ट्स है, खासतौर पर उस देश के लिए जो विशेष गोला बारुद नहीं बना सकता । इनमें थोड़ा समय लगेगा । भारत रक्षा उत्पादों के मामले में दुसरे देशों पर से अपनी आत्मनिर्भरता कम करने के मामले में अभी बहुत पीछे है ।
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