उत्तरी कश्मीर में बांदीपुरा के हाजिन इलाके में मुठभेड़ में वायुसेना के दो गरुड़ कमांडों शहीद हो गए । ऐसी पहली बार हुआ हैं कश्मीर में गरुड़ कमांडो को आतंकी मुठभेड़ में अपनी जान गंवानी पड़ी हो । चंडीगढ़ में जब शहीद सार्जट मिलिंद किशोर और कॉरपोरल नीलेश कुमार को भावभीनी श्रद्धाजंलि दी गई तो हर किसी की आंखे भर आई । वायुसेना के कमांडो दस्ते के गरुड के कई सदस्य इस समय कश्मीर में थलसेना की विभिन्न टुकडियों के साथ आतंकविरोधी अभियानों के संचालन का प्रशिक्षण ले रहे हैं । गरुड़ कमांडोज की ट्रेनिंग नेवी के मार्कोस और आर्मी के पैरा कमांडोज की तर्ज पर ही होती हैं । इन्हें एयरबोर्न ओपरेशंस, एयरफील्ड सीजर की ट्रेनिंग नेवी के मार्कोस और आर्मी के पैरा कमांडोज की तर्ज पर ही होती हैं । इन्हें एयरबोर्न ओपरेशंस, एयरफील्ड सीजर और काउंटर टेररेजम का जिम्मा उठाने के लिए ट्रेन किया जाता हैं । २००१ में जम्मू कश्मीर में एय़र बेस पर आतंकियों के हमले के बाद वायुसेना को एक विशेेष फोर्स की जरुरत महसूस हुई । इसके बाद २००४ में एयरफोर्स ने अपने एयर बेस की सुरक्षा के लिए गरुड़ कमांडों फोर्स की स्थापना की । आर्मी और नेवी से अलग, गरुड़ कमांडो वॉलनटिअर नहीं होते । उन्हें सीधे स्पेशल फोर्स की ट्रनिंग के लिए भर्ती किया जाता हैं । और एक बार गार्ड फोर्स जॉइन करने के बाद कमांडो अपने पूरे करियर के लिए यूनिट के साथ रहते हैं । इस वजह से यूनिट के पास लंबे समय के लिए बेस्ट सोल्जर रहते हैं । गरुड़ कमांडों के लिए काफी कड़ी ट्रेनिंग होती हैं । यह ५२ हफ्तों की स्पेशल ट्रेनिंग हैं, जिसमें सभी सिक्रूट्स को शामिल होना अनिवार्य होता हैं । इंडियन स्पेशल फोर्सेज मंे इतनी लंबी ट्रेनिंग और किसी भी फोर्स की नहीं होती । यही वजह है कि ये कमांडो अपना विशेष स्थान रखते हैं । गरुड़ कमाडो की ट्रेनिंग और किसी भी फोर्स की नहीं होती । यही वजह है कि ये कमांडो अपना विशेष स्थान रखते हैं ।
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