कांग्रेस के बागी शंकरसिंह वाघेला अपने समर्थक कांग्रेस विधायकों को लेकर सही-सही अंदाजा नहीं लगा पाए, जिसकी कीमत भाजपा को चुकानी पड़ी । वाघेला के गणित पर यकीन कर भाजपा सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को राज्यसभा में जाने से रोक पाने में नाकाम हो गई । सूत्रों के मुताबिक जब वाघेला ने पिछले महीने कांग्रेस को तोड़ने का फैसला किया और विधानसभा में नेता विपक्ष के पद से इस्तीफा दिया, तो उन्हें लगा था कि कांग्रेस के ५७ में कम से कम १५ विधायक उनके प्रति प्रतिष्ठावान हैं । इसके अलावा उन्हें यह भी भऱोसा था कि करीब दर्जन भर और विधायक कांग्रेस में बड़ी टूट की सूरत में उनके पाले में आ जाएगे । जब वाघेला ने अपने करीबी रिश्तेदार और कांग्रेस के चीफ वीप बलवंत सिंह राजपूत को राज्यसभा टिकट देने के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से डील की तो उस वक्त भरोसा था कि अगर आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा से टिकट मिलने का भरोसा मिले तो कांग्रेस के करीब ३० विधायक डूबते जहाज को छोड़ने के लिए तैयार होंगे । अहमद पटेल से खार खाने वाले अमित शाह के लिए यह एक लुभावना ओफर था । शाह यही मानते हैं कि उन्हें कथित तौर पर फर्जी मुठभेड़ों के मामलों में फर्जी तरीके से फंसाने और सीबीआई द्वारा उनकी गिरफ्तारी के पीछे पटेल का ही हाथ था । इसके अलावा शाह को लगा कि वाघेला के आदमी अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा को एक बार फिर सत्ता में लाने में मददगार होंगे । वाघेला अपनी राजनीतिक पारी का अंत मान चुके थे और उनकी चिंता सिर्फ यही थी कि बेटे और कांग्रेस विधायक महेन्द्रसिंह का राजनीतिक भविष्य उज्जवल हो ।