भारत ने आखिरकार १० सालों की देरी के बाद मदर ऑफ ऑल अंडरवोटर डिफेंस डील्स पर काम शुरु कर दिया हैं । एक भारतीय शिपयार्ड के साथ पार्टनरशिप में छह स्टेल्थ पनडुब्बियों के निर्माण के लिए फ्रांस, जर्मनी, रुस, स्वीडन, स्पेन और जापान जैसे दिग्गज पनडुब्बी निर्माता देशों की कंपनियों की नजर इस प्रोजेेक्ट पर हैं, जिसकी अनुमानित लागत लगभग ७०००० करोड़ रुपये बताई जा रही हैं । नेवी की ताकत बढ़ाने की दिशा में इस प्रोजेक्ट को मील का पत्थर माना जा रहा हैं ।प्रोजेक्ट -७५ नाम की इस परियोजना के तहत भारत अगली पीढ़ी की स्वदेशी पनडुब्बियों का निर्माण करेगा । इस प्रोजेक्ट की जरुरत को नवम्बर २००७ में मंजूरी दी गई थी, लेकिन तब से यह प्रोजेक्ट फाइलों और कमिटियों मे ही उलझा रह गया । अब इस साल मई में रक्षा मंत्रालय की ओर से तय की गई रणनीतिक साझेदारी की नीति के तहत यह पहला मेगा प्रोजेक्ट शुरु किया जाएगा । हालांकि अभी सिर्फ शुरुआत भर हुई हैं । अधिकारियों ने बताया कि सबसे पहले फ्रांस, जर्मनी, रुस, स्पेन, स्वीडन और जापान की कंपनियों को उन्हें जारी किए गए आरएफआई (रिक्वेस्ट फॉर इन्फरर्मेशन) का १५ सितम्बर तक जवाब देना होगा । इन देशों की छह कंपनियों को आरएफपी जारी किए जाने से पहले नेवी की ओर से एनएसक्यूआरएस (नेवल स्टाफ क्वॉलिटेटिव रिक्वायरमेंट्स) बताई जाएगी । एक तरफ यह प्रक्रिया चलेगी और इसी के समानातर भारतीय शिपयार्ड चुनने का काम भी चलता रहेगा । रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि इस प्रक्रिया में लगभग २ साल लग सकते हैं और कोन्टैक्ट होने के बाद नई पनडुब्बी के निर्माण में ७ से ८ साल का वक्त लग सकता हैं । सरकार के मंजूर किए गए प्लान के मुताबिक नेवी के पास १८ डिजल इलेक्ट्रीक पनडुब्बिया छह परमाणु हमला करने में सक्षम पनडुब्बियां और चार ऐसी परमाणु पनडुब्बियां होनी चाहिए जो लॉन्ग रेज के परमाणु मिसाइल दागने की क्षमता रखती हो । चीन और पाकिस्तान से लड़ने के लिए नेवी के पास यह ताकत होना बहुत जरुरी हैं । बता दें कि इसके पहले भारत का प्रोजेक्ट ७५ भी चार साल देरी से शुरु हुआ था । फिलहाल इसके तहत मुंबई के मझगांव में छह स्कॉर्पिन क्लास की पनडुब्बियों का निर्माण किया जा रहा हैं ।