जम्मू और कश्मीर में राष्ट्रपति शासन को बढ़ाने के प्रस्ताव में सोमवार को राज्यसभा में तीखी बहस देखने को मिली । कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं ने सरकार को घेरने की कोशिश की और जब जवाब देने के लिए गृह मंत्री अमित शाह खड़े हुए तो उन्होंने करारा पलटवार किया । कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत के पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए उन्होंने जम्मू-कश्मीर की पिछली सरकारों पर हमला बोला । इस दौरान उन्होंने सूफी संतों और कश्मीरी पंडितों का भी जिक्र किया । दरअसल, विपक्ष ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नारे का जिक्र कर सरकार की मंशा पर सवाल उठाए थे । इस पर जवाब देते हुए शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में पंच-सरपंच के चुनाव क्यों नहीं कराए गए? उन्होंने कहा कि सूफी परंपरा का सबसे बड़ा गढ़ जम्मू-कश्मीर रहता था । किसने निकाल दिया उन्हें और फिर किसी ने कुछ नहीं बोला । कश्मीरी पंडितों को घरों से निकाल दिया गया । उनके घरों को तोड़ दिया गया । उस समय कश्मीरियत की चिंता किसी को नहीं थी? उन्होंने कहा कि सरकार की नीति है कि कश्मीर की आवाम की संस्कृति का संरक्षण हम ही करेंगे । शाह ने कहा कि एक समय आएगा जब क्षीर भवानी के मंदिर में कश्मीरी पंडित भी पूजा करते दिखाई देंगे और सूफी संत भी दिखाई देंगे । स्कूल बंद हो गए । पीढ़ियां अनपढ़ हो गईं, क्या यह इंसानियत है । उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति शासन में इस ओर ध्यान दिया गया । शौचालय, सिलिंडर और बिजली पहुंचाई गई यह इंसानियत है । कश्मीर के अंदर सस्ता अनाज पहुंचा है । विधवा और वृद्धा पेंशन सीधे बैंक खातों में पहुंच रही है, यह इंसानियत है । आयुष्मान भारत के तहत इस राज्य में कवरेज काफी ज्यादा है । हम कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत के तहत ही आगे बढ़ेंगे । घाटी के लोगों को मैं कहना चाहता हूं कि भारत के साथ खुद को जोड़िए । किसी से डरने की जरूरत नहीं है और किसी भी दुष्प्रचार में मत फंसिए । हम आपकी चिंता करेंगे ।