सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी मुकेश गुप्ता और उनके परिवार के सदस्यों के फोन टैपिंग मामले में गहरी नाराजगी जताई। शीर्ष अदालत ने छत्तीसगढ़ सरकार की कथित कार्रवाई पर सोमवार को तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या किसी के लिए भी निजता नहीं बची है। न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार से जानना चाहा कि क्या इस तरह से किसी भी व्यक्ति के निजता के अधिकारों का हनन किया जा सकता है। जस्टिस अरूण मिश्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने छत्तीसगढ़ सरकार को मामले में विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
अदालत ने छत्तीसगढ़ सरकार को यह भी निर्देश दिया कि वह हलफनामे में यह भी बताए कि फोन की टैपिंग का आदेश दिया किसने और ऐसा आदेश किन वजहों से दिया गया। अदालत ने सख्त लहजे में ऐसा काम करने की जरूरत है। ऐसा लग रहा है कि इस देश में किसी के लिए कोई निजती बची ही नहीं है। अदालत ने सवाल किया कि देश में आखिर हो क्या रहा है। शीर्ष अदालत ने पूछा कि क्या किसी व्यक्ति की निजता का इस तरह हनन किया जा सकता है। यही नहीं अदालत ने आईपीएस अधिकारी की पैरवी कर रहे वकील के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने पर भी नाराजगी जताई। साथ ही वकील के खिलाफ पुलिस की जांच पर रोक लगा दी। अदालत ने सख्त लहजे में निर्देश जारी करते हुए कहा कि मामले में अगले आदेश तक कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।
अदालत ने आईपीएस अधिकारी मुकेश गुप्ता के वकील महेश जेठमलानी से कहा कि मामले में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का नाम नहीं घसीटा जाए। अदालत ने हिदायत दी कि मामले को राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए। साथ ही निर्देश दिया कि पक्षकारों में से मुख्यमंत्री बघेल का नाम हटाया जाए। बता दें कि वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी मुकेश गुप्ता ने याचिका में छत्तीसगढ़ के सीएम बघेल को भी प्रतिवादी बनाया है।
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