लोकसभा में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के पक्ष में अकाली दल मोदी सरकार को समर्थन देकर फंस गया है। इस मामले में सोशल मीडिया पर सिख समाज के नेताओं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सिख संगठनों में अकाली दल के प्रति गुस्सा देखा जा रहा है। इस मामले में कुछ पंथक नेताओं और शिरोमणि अकाली दल से दशकों तक जुड़े रहने के बाद अलग होकर टकसाली अकाली दल बनाने वाले नेता सेवा सिंह सेखवां का कहना है कि अकाली दल ने कश्मीर मामले में केंद्र का साथ देकर अपने दशकों के इतिहास को धराशायी किया है। इस प्रकार जम्मू-कशमीर में कश्मीरियों से उनके सारे हक छीन लिए गए हैं, उसी प्रकार पंजाब के सारे हक भी केंद्र ने पंजाबी सूबा बनाने के समय छीन लिए थे। न तो पंजाब को उसका पूरा पानी मिला, न ही पूरी जमीन और न ही पूरे हक।
अकाली दल ने आज तक जिस आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के नाम पर राजनीति की है और जिस आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के लिए 1984 में पंजाब ने काला दौर झेला है, उसकी अवहेलना करते हुए अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल और उनकी पत्नी हरसिमरत बादल ने संसद में कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के लिए केंद्र सरकार का साथ दिया है जोकि आनंदपुर साहिब के प्रस्ताव का उल्लंघन है। सेखवां ने कहा कि अकाली दल के प्रधान सुखबीर और उनकी पार्टी का कश्मीर बारे लिया फैसला अकाली दल की नीतियों की उल्लंघना है। आनंदपुर साहिब का प्रस्ताव 1973 में बना था व इसके चेयरमैन सुरजीत सिंह बरनाला थे और इसकी सारी देखरेख सरदार कपूर सिंह द्वारा की गई थी।
इस बारे में अकाली दल के प्रवक्ता डा. दलजीत सिंह चीमा का कहना है कि अकाली दल ने कश्मीर की अनुच्छेद 370 हटाने के लिए वोटिंग करके कोई आनंदपुर साहिब के प्रस्ताव की उल्लंघना नहीं की। उन्होंने कहा कि आनंदपुर साहिब के प्रस्ताव में कहीं ऐसा नहीं लिखा गया कि किसी स्टेट को ऐसी पावर दी जाए जो आपके अपने लोगों के खिलाफ जाए। कश्मीर में अनुच्छेद 370 लगने से सिखों और ङ्क्षहदुओं का नुक्सान हुआ था क्योंकि न तो वहां बाहर से जाकर कोई सिख या कोई हिन्दू बस सकता था और न ही वहां माइनारिटी कमीशन बन सकता था। उन्होंने कहा कि आनंदपुर साहिब का प्रस्ताव राज्यों को अधिक अधिकार देने बारे है, न कि किसी राज्य को अलग संविधान या अलग झंडा देने का। उन्होंने कहा कि केंद्र ने यह विश्वास दिलाया है कि जब कश्मीर में लॉ एंड आर्डर सही हो जाएगा तो जम्मू-कशमीर को अलग राज्य घोषित कर दिया जाएगा।
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