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अस्सी फीसदी रिक्त पदों के आधार पर चल रहा मानवाधिकार आयोग

लखनऊ के विभूति खण्ड, गोमती नगर स्थित उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग आजकल डायलिसिस पर चल रहा है और 80 प्रतिशत प्रमुख पद रिक्त होने के कारण प्रदेश के मानव अपने अधिकारों से वंचित हो रहे हैं।सबसे पहले मानवाधिकार आयोग के मुखिया जस्टिस एस रफत आलम की बात करते हैं। आयोग के चेयरमैन पिछले एक साल से एसजीपीजीआई में अपनी किडनी का इलाज करवा रहे हैं और प्रत्येक सप्ताह में तीन बार उनकी डायलिसिस होती है। यही नहीं चेयरमैन रफत जब पीजीआई में डायलिसिस करवाने जाते हैं तब अपने साथ आयोग के किसी जिम्मेदार अधिकारी को भी अपने साथ ले जाते है। सोमवार को जब सम्वाददाता मानवाधिकार आयोग पहुंचा तो चेयरमैन साहब पीजीआई में डायलिसिस करवाने के लिए अपने साथ प्रशासनिक अधिकारी बाजपेई जी को लेकर गए हुए थे। उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग में 5 प्रमुख पद होते हैं, जिनमें सबसे पहले चेयरमैन, फिर 2 सदस्य, एक सचिव और एक डीजी पुलिस का। इनमें से चेयरमैन साहब तो डायलिसिस पर चल रहे हैं दो सदस्यों तथा सचिव का पद रिक्त पडे हुए हैं। आयोग में चेयरमैन के नीचे दो सदस्यों के पद होते हैं जो सुनवाई और मामलों के निस्तारण का कार्य करते हैं। इन दोनों पदों में एक पद न्यायिक विभाग से जुडा होता है और दूसरा पद रिटायर्ड या सोशल वर्किंग का होता है। उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग में सदस्यों के दोनों पद पिछले लगभग दो सालों से रिक्त पड़े हुए हैं। अब बात करते हैं एक बहुत ही अहम पद यानि कि सचिव के पद की। सचिव का पद पिछले लगभग दो महीनों से रिक्त पड़ा हुआ है और विश्वसत सूत्रों के अनुसार सचिव पद पर शशीभूषण लाल सुशील, आईएएस की नियुक्ति की गई थी लेकिन वह पदभार ग्रहण नहीं कर रहे हैं। सचिव का मानवाधिकार आयोग में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है और सचिव प्रशासनिक कार्य देखने के साथ-साथ चेयरमैन तथा सदस्यों की सहायता करने का काम भी करते हैं। विश्वसत सूत्रों से सम्वाददाता को यह भी पता चला कि पांचवें पद पर तैनात डीजी पुलिस, डी एल रत्नम, आईपीएस, मानवाधिकार आयोग को पूर्णतया सहयोग नहीं कर रहे हैं और विभाग के लोगों पर ही पुलिसिया रोब गांठते फिरते हैं। उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग में चेयरमैन एक साल से डायलिसिस पर है। दोनों सदस्यों के पद दो सालों से रिक्त पड़े हुए हैं। सचिव का पद दो महीनों से रिक्त हैं। डीजी पुलिस सहयोग नहीं कर रहे हैं। तो ऐसे में उत्तर प्रदेश के मानव अपने अधिकारों की सुरक्षा हेतु कहाँ गुहार लगाने जाएंगे ? उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव या सूबे की वर्तमान योगी सरकार मानवाधिकार आयोग के इस खेल को क्यों नजरअंदाज कर रही हैं ?

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