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कांग्रेस : निजी दुकान बने पार्टी

कांग्रेस के अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कई अन्य युवा नेताओं के इस्तीफों की झड़ी लग गई है। लेकिन कांग्रेस के खुर्राट बुजुर्ग नेताओं में से किसी ने भी इस्तीफा नहीं दिया है, क्योंकि चुनाव-प्रचार के दौरान उनका कोई महत्व ही नहीं था। कांग्रेस का मतलब सिर्फ राहुल गांधी था जैसे भाजपा का मतलब था, सिर्फ नरेंद्र मोदी। 2019 का चुनाव वास्तव में न तो किसी विचारधारा पर लड़ा गया और न ही किसी नारे पर। यह चुनाव तो अमेरिकी चुनाव की तरह अध्यक्षात्मक चुनाव था। भाजपा फिर भी भाई-भाई पार्टी थी। अमित शाह और नरेंद्र मोदी। नरेंद्र भाई और अमित भाई ! लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस तो मां-बेटा पार्टी भी नहीं रही। सिर्फ बेटा पार्टी बनकर रह गई। बेटे ने यों तो कोई कसर नहीं छोड़ी। बड़ी मेहनत की। बहुत घूमा। बहुत बोला। नहीं बोलने लायक भी बोला। अपनी पप्पूपने की छवि को भी सुधारा लेकिन चुनाव-परिणाम ने दिल तोड़ दिया। अब इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस पार्टी के होश गुम हैं। अभी तक वह नया अध्यक्ष नहीं ढूंढ पाई। कोई भी इस प्रायवेट लिमिटेड कंपनी का अध्यक्ष बनकर करेगा क्या ? उसे मां-बेटे का रबर का ठप्पा ही बनना पड़ेगा। क्या अध्यक्ष का चुनाव कांग्रेस के लाखों कार्यर्त्ता मिलकर करेंगे ? क्या प्रदेशों की कार्यकारिणी समितियां करेगी ? क्या केंद्रीय कार्यसमिति में चुनाव के द्वारा अध्यक्ष बनाया जाएगा ? सबसे पहले कांग्रेस को प्रायवेट लिमिटेड कंपनी से बदलकर एक राजनीतिक पार्टी का रुप दिया जाना चाहिए। कांग्रेस के फैलाए हुए जहर को भाजपा ने भी निगल लिया है। उसका स्वरुप भी प्राइवेट लिं. कं. की तरह होता चला जा रहा है। हमारी प्रांतीय पार्टियां तो पहले से ही प्रायवेट कंपनी ही नहीं, निजी दुकानें भी बनी हुई हैं। हमारी सभी पार्टियां नोट और वोट के झांझ कूटने में लगी हुई हैं। सबने अपना-अपना जातीय और सांप्रदायिक जनाधार बना रखा है। कांग्रेस के लिए यह अमूल्य अवसर है कि वह इस समय देश को लोकतंत्र के मार्ग पर चला दे। अभी वह चाहे हारी हुई उदास और छोटी पार्टी ही है लेकिन वह अपने अध्यक्ष का चुनाव लाखों सदस्यों के वोट से करे तो वह अध्यक्ष इस प्रा. लि. कं. को सचमुच राजनीतिक पार्टी में बदल सकता है। वह प्रचंड जन-आंदोलन छेड़ सकता है। सरकार को वह सही रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर सकता है। आज देश के हर जिले, हर शहर और हर गांव में कांग्रेस का कोई न कोई नामलेवा मौजूद है। उसके पास कई अनुभवी नेता भी हैं। यदि कांग्रेस में अब भी बुनियादी सुधार नहीं हुआ तो वह भी ब्रिटेन की टोरी और व्हिग पार्टी की तरह इतिहास का विषय बन जाएगी। भारत के लोकतंत्र का यह दुर्भाग्य ही होगा। 

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