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श्रीमान आरबीआइजी, ये वीलफुल डिफोल्टर आपके चाचा-मामा लगत है का..?!

देश की सेन्ट्रल बैंक आरबीआईने जानकारी दी है की बांकींग सेक्टर में जो करीब 9 लाख करोड एनपीए है(यानि जो राशि “मिलने” की उम्मीद सब से ज्यादा है…!) उस में से करीब 3 लाख करोड की राशि शिर्ष 30 वीलफुल डिफोल्टरो के पास है। युं कहा जाय की ये 3 लाख करोड की राशि भारत के ऐसे 30 लोगो के पास है जो बडे बडे है। लेकिन आरबीआईने उनके नाम देने से मना कर दिया। आरटीआई के तहत भी ये 30 नाम देने से मना कर दिया। सुप्रिम कोर्ट ने भी आरबीआई को कहा की ये वीलफुल डिफोल्टों के नाम सारवजनिक किया जाना चाहिये। लेकिन आरबीआई अपने आप को अदालत से (कानून से) उपर समझती है इसलिये अभी तक एक भी बडे डिफोल्टर के नाम घोषित नहीं किये। आरबीआई ने यह कहा की उनके पास खाताबही की जानकारी नही है। सवाल ये है की जब उनके खातों की जानकारी नहीं तो फिर उन्होंने 3 लाख करोड की राशि दबा ली या दबा के बैठे है उसकी जानकारी कैसे हाथ लगी…? बिन मौसम बरसात….? बिन दुल्हें की बारात….? 9 लाख करोड में से 33 प्रतिशत राषि 30 लोगों के पास से वसूलनी है लेकिन उनकी जानकारी आरबीआई देश को नहीं दे सकती। वजह….ये नाम देने से देश में वित्तिय संक्ट सकता है….या भूचाल आ जायेंगा….या क्या से क्या हो जायेंगा उसकी कोइ जानकारी आरबीआई के पास नहीं।
पूरा देश जान चुका है की एक बडे घराने के उद्योगपति की क्या हालत हो गई….! क्या ये भी वीलफुल डिफोल्टर हे…? आये दि अखबार में छोटे छोटे डिफोल्टरों के नाम उनके फोटो के साथ छप रहे है जिन से बकाया राशि है। लेकिन जिन्हों ने लोगो के 3 लाख करोड की रकम डकार ली है और बैंको को जवाब नहीं दे रहे उनके नाम मांगो तो मूंह देखो आरबीआईजी का…! मानो ये 30 बडे डिफोल्टर आरबीआईजी के चाचा मामा लगते हो ऐसे उनके नाम अपने सीने से छिपा के रखे है….! मानो होठों पे ऐसी बात में दबा के चली आइ….खुल जाय वही बात जो दुहाइ है दुहाइ…की तरह आरबीआईने देश की सब से बडी अदालत का आदेश मानने से भी इन्कार कर दिया। कोर्टने आरबीआई को कहा लास्ट वार्निंग भी दी है लेकिन आरबीआई के कान पर जूं तक नहीं रेंगती….! आखिर ऐसा क्या है की आरबीआई बडे बडे…नाम बडे लेकिन दर्शन खोटे…के नाम नहीं बताती….? क्या आरबीआई इन से डरती है…क्या इन्होंने कोइ धमकी बगैरहा दे रखी है….आखिर ये माजरा क्या है की छोटी मछलियां हाथ में आ जाती है लेकिन मगरमच्छ हाथ में नहीं आते….?
कुछ समय पहले एक नीजी बैंक की बडी महिला अफसर को निकाल दी गई। उसके खिलाफ पुलिस के दर्ज हुवा लेकिन उनकी गिरफ्तारी नहीं हो रही। सीबीआईने जब इस विडियोकोन केस में कई बैंको के आला अफसरों के नाम घोषित किये तो उस वक्त के वित्त मंत्रीने सीबीआई को झाड दिया की ऐसे कैसे आप कीसी का नाम ले सकते हो….बगैरहा बगैरहा ब्लोग में लिख दिया। यदि कीसी छोटे कर्मी का नाम होता तो..? ब्लोग नहीं लिखा जाता लेकिन सीधा फोन जाता की अभी तक गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई…? ये हाल है भारत के बैंकिंग सेक्टर का। कहीं चंदा की चांदनी में दिपक टीमटीमा रहे है तो कहीं वेणु और गोपाल पैसो को नशे में धूत होकर जांच एजन्सी को चकमा दे रहे है। क्या ये डिफोल्टर नहीं है…? क्या उनका नाम देने से भूचाल आ जायेंगा…? क्या… होता क्या है या क्या हो सकता है यदि उनके नाम घोषिक किये गये तो….? ये तो वही हुवा की चोरी करना तो बडी…ताकि कुछ नुकशान ही नहीं। पैसे डूबे तो बैंको के या लोगों के.. हमें क्या….चंदा जैसी ने दिपक जलाने लौन पास कर दी। लाभ हो गया। लोन लेनेवाले ने हाथ उपर कर दिये। और वह तो भूखा नहीं मर रहा लेकिन बैंको का घाटा राजे की राजकमारी की तरह दिन दुनी और रात चौगुनी बढ रहा है। डिफोल्टर मस्त….मस्त….और आरबीआई भी मस्त मस्त…! एक ही बात कहने की कि हम डिफोल्टरों के नाम नहीं दे सकते, जो बन पडता है कर लो.. ये लो…ठेंगा…!!!

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