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काहे फरियाद करत हो, हमने ही तो चुनी है नये भारत की उंची बुलंदीवाली सरकार….! आदत डालियें…!

बिहार में श्रीमान सुशानबाबु के राज में 100 से ज्यादा बच्चें एक के बाद एक मौत को भेट गये। वजह कई बताई गई। कीसीने कहा लीची ज्यादा खाने से मर गये तो कीसीने कहा की कूपोषण और गरीबी की वजह से मर गये तो कीसी ने कुछ ओर कहा। बिहार में चूंकी भाजपा भी सरकार में शामिल है ईसलिये केन्द्र सरकार चुप है। बंगाल में या जहां भाजपा सरकार में नहीं वहां ऐसा होता तो कई एडवाईझरी जारी हो जाती। युपी के गोरखपुर में योगी राज में आकसीजन की कमी से 100 से ज्यादा बच्चे मर गये लेकिन उन्हें कोइ एडवाईझरी नहीं दी गइ। न तो बिहार के लिये कोइ वार्निंग दी गई है न तो कुछ और। केन्द्र के स्वास्थय मंत्री हर्षवर्धन ने बिहार का दौरा किया लेकिन सरकार पर कोइ दोषारोपण नहीं किया। कीसी मंत्रीने तो क्रिकेट का स्कोर भी पूछ डाला…! कोइ मंत्री बच्चों की इस घटना के लिये आयोजित पत्रकार वार्ता में सोये नहीं थे लेकिन बच्चों को कैसे बचाया जा सके उसका चिंतन कर रहे थे….!

बिहार के मुख्यमंत्री नितीशकुमार ने 100 से ज्यादा बच्चें मारे गये तब मानो यकायक निंद से जागे हो….की तरह अस्पताल का दौरा किया तब उन्हें वापिस जाओ… का ताना सुनना पडा। जो रपट आ रही है उसके अनुसार बिहार में इन बच्चों को बचाने के लिये पर्याप्त मात्रा मं दाक्टर नही, दवाइ नही, सुविधा नहीं और कूपोषित बच्चें होने से उन्हें बचाया नहीं जा सके। कहीं कहीं लीची ज्यादा खाने से ये बच्चे मर गये होने की बात सामने आइ है। तो ज्यादातर मरनेवाले बच्चे दलित समाज से होने की भी रपट है। सुशासन बाबु के नाम से जानेवाले नितिशकुमार के राज में कैसा सुशासन है ए भी देखने को मिल रहा है। भाजपा सरकार में बराबरी का भागीदार है लेकिन ताने मिल रहे है सीएम को। बिहार में सीएम बनने का ख्वाब देख रहे भाजपा के सुशील मोदी चुप है। पहले शेल्टर कांड अब तंत्र की लापरवाही से कइयों की जाने गई लेकिन सुशीलजी मौन है। नीतिशकुमार खामोश है। करें तो क्या करे….केन्द्र सरकार तो कुछ बोल नहीं रही। उपर से ये निर्दोष बच्चों की मौतो से सियासी चालें भी शूरु हो गइ है।

कोइ यदि ये कहे की भईया….ओक्सीजन न हो…दवाइ न हो….डोक्टर ना हो….तो इस में चिल्लाने की कोना जरूर नाहीं…! काहे….? हम ही तो पसंद करे है ऐसी सरकार जो की पाकिस्तान के आतंकी हमले से बचायेंगी लेकिन बिमारी से एक भी बच्चा कोनो ना मरे ऐसा करे या न करे तो उनका मर्जी। कछु बोलने की जरूरत नांही है। हमने ही तो वोट दिये है नये भारत के लिये जहां ऐसा कुछ भी नहीं होंगा जो पहले हो चुका हो…! आदत डालनी होगी सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की….! कडें फैसले लेने के लिये ही तो देश के मतदाताओं ने ऐसी मजबूत सरकार चुनी जो एक राज्य में कुछ ही समय में 100 से ज्यादा बच्चें मारे जाने के बाद भी मौन है। प्रशासनबाबु अपनी चाल में है। वे सियासी चाल की तलाश में है। जैसे ही मौका मिलेंगा वे एनडीए से अलग हो जाय तो भी बिहार के लोगों से बढकर नहीं है। प्रसाशनबाबु की ढीली निति की वजह से अब निर्दोष बच्चों को मौत का सामना करना पडा है। जनता को इसकी जन फरियाद नहीं करनी चाहियें। उन्हें अब इसकी आदत डालनी होंगी। ओक्सीजन न मिले तो कोइ बात नहीं। दवाईयां न मिलो तो कोइ बात नहीं….आंसु न बहा फरियाद ना कर…..दिल जलता है तो जलने दे…तु मन की बात सुनने की तैयारी कर….नया भारत का सूरज निकल चुका है…..दो हाथ उठा और सूर्य नमस्कार करें…..बच्चों को छोडो योगा दिन की तैयारियां करे….!

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