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बलात्कारियों को फांसी दी जाए

जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में बकरवाल समुदाय की एक मुस्लिम लड़की के साथ पहले बलात्कार किया गया और फिर उसकी हत्या कर दी गई। वह लड़की सिर्फ आठ साल की थी। उसे एक मंदिर में ले जाकर नशीली दवाइयां खिलाई गईं और फिर उक्त कुकर्म किया गया। उन अपराधियों पर विशेष मुकदमा चला और उनमें से तीन को उम्र-कैद हुई और तीन को पांच-पांच साल की सजा ! सिर्फ डेढ़ साल में यह फैसला आ गया, यह गनीमत है। लेकिन मैं इस फैसले को नाकाफी मानता हूं। पहली बात तो यह कि इस घोर राक्षसी मामले को सांप्रदायिक रुप दिया गया। एक हिंदू रक्षा मंच ने अपराधियों को बचाने की कोशिश की, क्योंकि वे हिंदू थे और वह बच्ची मुसलमान थी। इस मामले में भाजपा के दो मंत्रियों को अपनी बेवकूफी के कारण इस्तीफे भी देने पड़े। इसके लिए भाजपा-नेतृत्व बधाई का पात्र है लेकिन कितने शर्म की बात है कि यह जघन्य अपराध एक मंदिर में हुआ और उस मंदिर का पुजारी इस नृशंस अपराध का सूत्रधार था। मैं पूछता हूं कि वह मंदिर क्या अब पूजा के लायक रह गया है ? वह किसी वेश्यालय से भी अधिक घृणित स्थान बन गया है। उस पर कठुआ के लोगों को ही बुलडोजर चला देना चाहिए। जहां तक तीन लोगों को उम्र-कैद का सवाल है, उसमें वह पुलिस अधिकारी भी है, जो बलात्कार में शामिल था और जिसने सारे मामले को रफा-दफा कराने की कोशिश की थी। जिन अन्य अपराधियों को पांच-पांच साल की सजा मिली है और जुर्माना भी ठोका गया है, वे लोग इतने वीभत्स कांड में शामिल थे कि यह सजा उनके लिए सजा नहीं है, इनाम है। अब उनमें से आधे पूरी उम्रभर और आंधी पांच साल तक जेल में सुरक्षित रहेंगे, सरकारी रोटियां तोड़ेंगे और मौज करेंगे। कभी-कभी पेरोल पर छूटकर मटरगश्ती भी करेंगे। उनको मिली इस सजा का भावी अपराधियों पर क्या असर पड़ेगा ? यही न, कि पहले अपराध करो और फिर चैन से सरकारी रोटियां तोड़ते रहो। मेरी राय में इन सभी लोगों को न सिर्फ मौत की सजा मिलनी चाहिए बल्कि इन्हें लाल किले पर फांसी दी जानी चाहिए और इनके शव कुत्तों से घसिटवाकर यमुना में बहा दिया जाना चाहिए ताकि इस तरह के संभावित अपराध करनेवालों के मन में अपराध का विचार पैदा होते ही उनकी हड्डियों में कंपकंपी दौड़ जाए। इस तरह की कठोर सजा नहीं होने का परिणाम यह है कि कठुआ-कांड के बाद उससे भी अधिक नृशंस दर्जनों घटनाएं देश में हो चुकी हैं और आज भी मध्यप्रदेश से कठुआ-जैसी ही खबर आई है।

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