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देश में तैयार हो रही कुठि़त युवाओं की फौज

आज आजादी के इतने सालों बाद भी हमारा देश भारत कई प्रकार की समस्याओं से उभर नहीं पाया है। इन समस्याओं में एक सबसे बड़ी समस्या है दृ बेरोजगारी की समस्या। बेरोजगारी का अर्थ किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता और ज्ञान के अनुसार सही काम या नौकरी ना मिल पाना। भारत में बेरोजगारी लोगों के जीवन में दो प्रकार से आक्रमण कर रही है।
इनमें दो वर्ग स्पष्ट एवं प्रमुख हैं। पहले वर्ग में वह शिक्षित लाखों लोग आते हैं जो नौकरी और रोजी-रोटी की तलाश में दर-बदर भटक रहे हैं। ऐसे लोगों के पास ना ही कोई काम है और ना ही कोई पैसे कमाने का अन्य जरिया, जिससे कि वह एक स्वतंत्र जीवन जी सकें।दूसरे वर्ग में वह लोग आते हैं जो नौकरी तो कर रहे हैं परंतु उससे वह इतना कम पैसा कमाते हैं कि अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी भी सही तरीके से नहीं जुटा पा रहे हैं। क्या यह बेकारी की समस्या देश के लिए बड़ी समस्या हीं है?
बेरोजगारी धीरे धीरे धीरे एक अभिशाप बनती जा रही है । एक बड़ी कहावत है , खाली मन शैतान का घर होता है। इसीलिए तो नौजवानों के लिए करियर के अच्छे अवसर और बेरोजगारी न होने के कारण ही समाज में लूट-पाट, चोरी-चकारी, दंगा-फसाद, और नशा जैसी बड़ी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।भारत के सर्वाधिक बेरोजगारी वाले दस में से पाॅच शहर यूपी के है यानि स्पष्ट है कि उत्तर भारत जबरदस्त बेरोजगारी की चपेट में है। सबसे चैकाने वाली बाॅत तो यह कि शैक्षाणिक महौल के लिए पूरब का आॅक्सफोर्ड कहे जाने वाले प्रयागराज पहले नम्बर पर और राजधानी लखनऊ नौवें नम्बर पर है। खेती बारी और पैत्रिक व्यवसायों से दूर हुई पढ़ी लिख युवा पीढ़ी बेरोजगारी के उस दौर से गुजर रही जिसके चलते जल्द ही भारत में कुठित युवाओं की एक ऐसी फौज सामने आ जाएगी जिसके सामने बहुमत की सरकारों को रास्ता तलाशना मुश्किल होगा। यह तय है कि एटीएम के आने से बैंक में कैशियर की नौकरियां कम हो गईं। मोबाइल फोन के आने से एसटीडी बूथ का धंधा चैपट हो गया। ऐसी मिसालें लम्बी फेहरिस्त है। हकीकत यही है कि नई तकनीक अपने साथ जहां कुछ पुराने रोजगारों को समाप्त करती है तो वहीं कुछ नई किस्म की नौकरियां भी सजित करती है। यानी तकनीक के साथ रोजगार पर बड़ा संकट नहीं आया है। मसलन एटीएम आया तो उसके रखरखाव और संचालन के क्षेत्र में नौकरियां सजित हुईं तो मोबाइल फोन के आने से उनकी मरम्मत का काम कई लोगों की आजीविका चला रहा है। निश्चित तौर पर नई तकनीक हमेशा कुछ न कुछ हलचल भी मचाती है और आने वाले समय में इससे जुड़ी उठापटक और तेज होने के आसार हैं। इस कड़ी में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआइ का नाम बड़े जोर-शोर से लिया जा रहा है। स्वचालित गाड़ियों से वाहन चालकों का रोजगार चैपट हो सकता है। वैसे भी विश्व बैंक के दबाव में केन्द्र एवं राज्य सरकार ने सर्वाधिक रोजगार और सुरक्षा की गारन्टी देने वाले केन्द्र एवं राज्य सरकार चतुर्थ श्रेणी, वाहन चालक, चैकीदार से लेकर स्वास्थ्य विभाग की चतुर्थ की भर्ती लगभग खत्म कर दी है। इसके सापेक्ष जो ठेका प्रणाली चल रही है वह बेरोजगारों के शोषण की पराकाष्ठा पार कर रही है। अब प्रश्न है कि नए कार्यों में नए रोजगारों का पर्याप्त मात्रा में सजन हो। एम्प्लॉयमेंट एनालिसिस नाम की वेबसाइट के अनुसार 1900 में अमेरिका में 1,09,000 घोड़ा गाड़ी चलती थीं और बिजली मिस्त्री नगण्य थे। 2002 में घोड़ा गाड़ी शून्य प्राय हो गईं जबकि बिजली मिस्त्रियों की संख्या 8,82,000 हो गई। यानी जितना पुराने रोजगार का हनन हुआ उससे दस गुना नए रोजगार सजित हुए। पिछले दिनों कार्ल बेनेडिक्ट द्वारा किए गए एक अध्ययन में आकलन किया गया कि अमेरिका के 47 प्रतिशत रोजगार संकट में पड़ सकते हैं। विश्व बैंक ने इस आकलन का गहन अध्ययन कराया और अनुमान लगाया कि केवल नौ प्रतिशत रोजगार का हनन होगा। यदि 47 प्रतिशत रोजगार का हनन होता है और 60 प्रतिशत रोजगार नए बनते हैं तो सुखद है। यदि नौ प्रतिशत का हनन होता है और केवल चार प्रतिशत नए बनते हैं तो दुखद है। अतरू हमारा ध्यान होना चाहिए कि नए रोजगार सजित हों।अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के एक अध्ययन के अनुसार नई तकनीकों के कारण उच्च क्षमता के इंजीनियरों के रोजगार का भारी मात्रा में सजन होगा। मध्यम क्षमता के कर्मियों की जरूरत बहुत कम हो जाएगी और निम्न क्षमता के कर्मियों के रोजगार में भी वद्धि होगी। आने वाले समय में केवल उच्च और निम्न वर्ग रह जाएंगे। माध्यम वर्ग का सफाया हो जायेगा। अतः चुनौती इस बात की है कि हम उच्च क्षमता के अधिक संख्या में रोजगार बनाएं। यह सच है कि राजग सरकार दूसरे कार्यकाल में वाईफाई को पूरे देश में फैलाएगी जो कि सही दिशा में कदम है, लेकिन रोजगार सजन तभी हो पाएगा जब शिक्षा व्यवस्था में सुधार होगा। सरकार को शिक्षा में सुधार के लिए कुछ बिंदुओं पर विचार करना चाहिए। पहली बात है कि विश्वविद्यालयों में राजनीतिक दबाव में कुलपतियों की नियुक्ति पर रोक लगानी चाहिए। हमारी पूरी शिक्षा व्यवस्था वैचारिक भ्रष्टाचार से ग्रसित है। सरकारी सेवाएं देने वाली संस्थाओं का भ्रष्टाचार इस कदर हावी है कि युवाओं का विश्वास के प्रति नकारात्मक हो रहा है। राजग सरकार ने बेरोजगारी रोकने के लिए जो कौशल मिशन कार्यक्रम चलाया वह लगभग फेल रहा है। इसकी समीक्षा कराई जाए तो चैकाने वाले तथ्य सामने आएगे। साल की शुरूआत में आई एक रिपोर्ट में कहा जा चुका है कि दो साल पहले हुई नोटबंदी के बाद देश में वर्ष 1972-73 के बाद बेरोजगारी दर सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई थी। शहरी इलाकों में बेरोजगारी की दर 7.8 फीसदी है, जो ग्रामीण इलाकों में इस दर (5.3 फीसदी) के मुकाबले ज्यादा है।ग्रामीण इलाकों की शिक्षित युवतियों में वर्ष 2004-05 से 2011-12 के बीच बेरोजगारी की दर 9.7 से 15.2 फीसदी के बीच थी, जो वर्ष 2017-18 में बढ़ कर 17.3 फीसदी तक पहुंच गई. ग्रामीण इलाकों के शिक्षित युवकों में इसी अवधि के दौरान बेरोजगारी दर 3.5 से 4.4 फीसदी के बीच थी जो वर्ष 2017-18 में बढ़ कर 10.5 फीसदी तक पहुंच गई थी। जो मई पार करने के साथ आगे ही बढ़ी है। ग्रामीण इलाकों के 15 से 29 साल की उम्र वाले युवकों में बेरोजगारी की दर वर्ष 2011-12 में जहां पांच फीसदी थी, वहीं वर्ष 2017-18 में यह तीनगुने से ज्यादा बढ़ कर 17.4 फीसदी तक पहुंच गई थी। इसी उम्र की युवतियों में यह दर 4.8 से बढ़ कर 13.6 फीसदी तक पहुंची थी। मई तक काफी परीक्षा परिणाम सामने आने के बाद बेरोजगारी का ताजा आकड़ा काफी तेजी से बढ़ा है। विशेषज्ञों का कहना है कि खेती अब पहले की तरह मुनाफे का सौदा नहीं रही। इसी वजह से ग्रामीण इलाके के युवा रोजगार की तलाश में अब खेती से विमुख होकर रोजगार की तलाश में शहरों की ओर जाने लगे हैं। शहरी इलाकों में सबसे ज्यादा रोजगार सृजन करने वाले निर्माण क्षेत्र में आई मंदी के चलते नौकरियां कम हुई हैं। सरकार चाहे बेरोजगारी के आंकड़ों को दबाने का जितना भी प्रयास करे, रोजगार परिदृश्य की बदहाली किसी से छिपी नहीं है. सेंटर ऑफ मॉनीटरिंग इंडियन इकोनामी (सीएमआईई) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि देश में बीते साल 1.10 करोड़ नौकरियां कम हुई हैं। रोजगार के अभाव में शिक्षित बेरोजगारों में हताशा लगातार बढ़ रही है. नौकरी के लिए आवेदन करने वालों के आंकड़े इस हताशा की पुष्टि करते हैं. मिसाल के तौर पर बीते साल मार्च में रेलवे में 90 हजार नौकरियों के लिए ेल रहे है। स्नातक बेरोजगारों की स्थिति तो यह है कि उसे मजदूर के बराबर भी मजदूरी नही मिल रही है। यानि वह पाॅच से सात हजार रूपये महीने की नौकरी करने को मजबूर है। कुल मिलाकर 2024 तक देश मेें कुठित युवाओं की वह फौज सामने होगी जिसें सम्हालना मुश्किल होगा।

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