सीबीआई में अफसरों के विवाद मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार से कड़ाई से सवाल पूछे हैं । सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा है कि सीबीआई बनाम सीबीआई विवाद तो टॉप अफसरों के बीच की ऐसी लड़ाई नहीं थी जो रातोंरात सामने आई ।
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं था कि सरकार को सिलेकशन कमिटी से बातचीत किए बिना सीबीआी निर्देशक की शक्तियों को तुरंत खत्म करने का फैसला लेना पड़ा । सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ आलोक वर्मा और एनजीओ कॉमन कॉज की अपील पर सुनवाई पूरी कर फैसा सुरक्षित रख लिया है ।
इससे पहेल गुरुवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की नेतृत्व वाली बेंच ने कहा कि केंद्र ने खुद माना है कि ऐसी स्थितियां पिछले ३ महीने से पैदा हो रही थीं । बेंचने कहा कि अगर केंद्र सरकार ने सीबीआई डायरेक्टर की शक्तियों पर रोक लगाने से पहले चयन समिति की मंजूरी ले ली होती तो कानून का बेहतर पालन होता । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार की कार्रवाई की भावना संस्थान के हिते में होनी चाहिए ।
गुरुवार को सीबीआई विवाद की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के तेवर सख्त नजर आए । चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि सरकार ने २३ अक्टूबर को सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा की शक्तियां वापस लेने का फैसला रातोंरात क्यों लिया ? चीफ जस्टिस ने पूछा, जब वर्मा कुछ महीनों में रिटायर होने वाले थे तो कुछ और महीनों तक इंतजार और चयन समिति से परामर्श क्यों नहीं हुआ ?
तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केंद्री सतर्कता आयोग (सीवीसी) इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि असाधारण स्थितियां पैदा हुई । उन्होंने कहा कि असाधारण परिस्थितियों को कभी-कभी असाधारण उपचार की आवश्यकता होती है । सॉलिसिटर जनरल ने कहा, सीवीसी का आदेश निष्पक्ष था, दो वरिष्ट अधिकारी लड़ रहे थे और अहम केसों को छोड़ एक दूसरे के खिलाफ मामलों की जांच कर रहे थे ।