वर्ल्ड डायाबीटीज डे है और यह दिन आपको अपनी जीवनशैली के बारे में अलर्ट करने के मकसद से मनाया जाता है । मोटे तौर पर समझने की कोशिश करें तो डायाबीटीज हॉर्मेंस के असंतुलन, मोटापा और अस्वस्थ जीवनशैली का एक मिला-जुला नतीजा है । इन कारणों से भोजन से मिला कार्बोहाइड्रेट, जिसे हमारी कोशिकाओं में जाकर ऊर्जा देने का काम करना चाहिए, खुन में ही घूमता रहता है । इससे खुन में शुगर की मात्रा तो जरूरत से ज्यादा मिलती ही है, शरीर के सभी अंगो की नसों पर भी प्रभाव पड़ने लगता है । यह बचपन में या किशोर अवस्था में अचानक इंसुलिन के उत्पादन की कमी होने से पैदा होने वाली बीमारी हैं । इसमें इंसुलिन हॉमोन बनना पुरी तरह बंद हो जाता है । ऐसा किसी एंटीबॉडी की वजह से बीटा सेल्स के पुरी तरह काम करना बंद करने से होता है । ऐसे में शरीर में ग्लूकोज की बढ़ी हुई मात्रा को कंट्रोल करने के लिए इंसुलिन के इंजेक्शन की जरूरत होती है । इसके मरीज काफी कम होते है । आमतौर पर ३० साल की उम्र के बाद यह धीरे-धीरे बढ़ता है । इससे प्रभावित ज्यादातर लोगो का वजन सामान्य से ज्यादा होता है या उन्हें पेट के मोटापे की समस्या होती है । यह कई बार आनुवांशिक होता है तो कई मामलो में खराब जीवनशैली से संबंधित होता है । इसमें इंसुलिन कम मात्रा में बनता है या पेंक्रियाज सही से काम नहीं कर रहा होता है । डायबीटीज के ९० फीसदी मरीज इसी कैटिगरी में आते है ।
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