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कर्नाटक चुनाव में ‘मठ’ और ‘वोट’ के रिश्ते को साधने की कवायद

कर्नाटक के ३० जिलों में ६०० से अधिक मठों ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, बीजेपी के प्रमुखों को अपनी शरण में आने पर मजबूर कर दिया है । कर्नाटक में हमेशा से ही मठों की राजनीति हावी रही और लोगों पर मठों का खास प्रभाव रहा है । लिहाजा राजनीतिक पार्टियां चुनावी समय में मठों के दर्शन कर वहां के मठाधीशों को अपनी ओर लुभाने की कोशिश करती रही है । ऐसे में मतदाताओं पर मठों के प्रभाव को देखते हुए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं । संत समागम से जुड़े स्वामी आनंद स्वरूप ने बताया कि कर्नाटक में लिंगायत समुदाय से जुडें करीब ४०० छोटे-बड़े मठ हैं जबकि वोकालिगा समुदाय से जुड़े करीब १५० मठ हैं । कुरबा समुदाय से ८० से अधिक मठ जुड़े है । इन समुदायों का कर्नाटक की राजनीति में खासा प्रभाव है, ऐसे में राजनीतिक दलों में इन मठों का आशीर्वाद प्राप्त करने की होड़ लगी रहती है । उन्होंने बताया कि कर्नाटक में मठ सिर्फ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र की नहीं है बल्कि प्रदेश के सामाजिक जीवन में भी इनका काफी प्रभाव माना जाता है । शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में निःस्वार्थ सेवा के साथ कमजोर वर्ग के लोगों के सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण में योगदान के कारण लोग इन मठों को श्रद्धा के भाव से देखते है । राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस कर्नाटक में इतनी कमजोर हनीं है जितनी विगत में कुछ राज्यों में थी । इसलिए यहां पर बीजेपी के लिए चुनौती बड़ी है । कांग्रेस के लिए भी यह चुनाव अग्निपरीक्षा है क्योंकि यहां पर जीत के साथ उसके हार के सिलसिले पर विराम लग सकता है । ऐसे में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया नीत कांग्रेस सरकार द्वारा लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने की पहल से उत्पन्न राजनीतिक स्थिति का फायदा उठाने और बीजेपी कर्नाटक में सत्ता हासिल करने के लिए कोई असर नहीं छोड़ना चाहती है ।

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