सुप्रीम कोर्ट ने आज 2002 गुजरात दंगे की पीड़िता बिलकिस बानो की याचिका पर सुनवाई की। जिसमें अदालत ने गुजरात सरकार को दो हफ्तों के अंदर सामूहिक दुष्कर्म पीड़िता को 50 लाख का मुआवजा, घर और नौकरी देने का आदेश दिया है।सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को 2002 के दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई बिलकिस बानो (बिल्किस बानो) को 50 लाख रुपए बतौर मुआवजा, नौकरी और आवास देने का निर्देश दिया। हालांकि, गुजरात सरकार ने सोमवार को बिलकिस बानो को 50 लाख रुपये मुआवजा, एकन नौकरी और घर देने की बात पर सहमति दिखाई और कहा कि हम इसे पूरा करेंगे। बता दें कि यह निर्देश पहले भी सुप्रीम कोर्ट दे चुका है, मगर इस बार कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर दो सप्ताह के भीतर बिलकिस बानों को ये सुविधाएं देने को कहा है।
अहमदाबाद के निकट हिंसक भीड़ के इस हमले में गर्भवती बिल्किस बानों से सामूहिक बलात्कार किया गया और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गयी थी। इस साल अप्रैल महीने में इस मामले की सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ को गुजरात सरकार ने सूचित किया कि इस मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा चुकी है। पीठ को यह भी बताया गया था कि पुलिस अधिकारियों के पेंशन लाभ रोक दिये गये हैं और बंबई उच्च न्यायालय द्वारा दोषी आईपीएस अधिकारी की दो रैंक पदावनति कर दी गयी है।
बिल्किस बानो ने इससे पहले शीर्ष अदालत के समक्ष एक याचिका पर उन्हें पांच लाख रुपए मुआवजा देने की राज्य सरकार की पेशकश ठुकराते हुये ऐसा मुआवजा मांगा था जो दूसरों के लिये नजीर बने। शीर्ष अदालत ने इससे पहले 29 मार्च को गुजरात सरकार से कहा था कि बंबई उच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराये गये आईपीएस अधिकारी सहित सभी दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ दो सप्ताह के भीतर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाये। बानो की वकील शोभा गुप्ता ने इससे पहले न्यायालय से कहा था कि राज्य सरकार ने दोषी ठहराये गये पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। उन्होने यह भी कहा था कि गुजरात में सेवारत एक आईपीएस अधिकारी इस साल सेवानिवृत्त होने वाला है जबकि चार अन्य पहले ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं और उनकी पेंशन तथा सेवानिवृत्ति संबंधी लाभ रोकने जैसी कार्रवाई भी नही की गयी है।