चुनाव के दौरान प्रत्याशी और राजनीतिक दल तथा उनके नेतागण कितनी प्यारी-प्यारी और भोली-भोली बातें करते हैं। वादे पर वादे करते है और जीतने के बाद कोई विधायक हाथ में क्रिकेट का बल्ला लेकर नगर निगम के अधिकारी को पीटता है। कोई विधायक नगर निगम के इंजीनियर पर किचड़ डालता है उसे बांधकर कर पीटता है तो कोई राजनीतिक दल के कार्यकर्ता पशु ले जाते वाहनों को रोक कर पीटाई करते है। हाल ही में जिस राज्य में भाजपा के विधायक आकाश कैलाश विजवर्गीय ने क्रिकेट का बल्ला लेकर अफसर की पीटाई की उसी मध्यप्रदेश के भोपाल शहर में भाजपा पूर्व विधायक सुरेन्द्र सिंह ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को जान से मार देने की धमकी दी है और खून की नदियां बहाने की धमकी दे डाली। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या इन विधायक और पूर्व विधायकों की डीएनए में कोई पीटाई का वायरस घुस गया है? कहीं भाजपा के- कहीं कांग्रेस के- कहीं एनसीपी के और कहीं शिवसेना के कार्यकर्ता द्वारा अफसरों की पीटाई के जो मामले बन रहें है जो लोकतंत्र के लिए कतई ठीक नहीं है।
भाजपा के आकाश विजयवर्गीय की हरकत देखकर खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चौंक उठे थे और उन्होंने भाजपा की एक बैठक में स्पष्ठ तौर पर कहा था कि बेटा चाहे किसी का भी हो मन मानी नहीं चलेगी। ऐसे हरकत करने वाले दल से निकाल देनेा चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी जी ने ये चेतावनी देने के बाद भी आकाश भाजपा में है और मानों की उसका कोई बिगाड़ नहीं सकता । इस तरह का एक राजनीतिक चित्र उभर कर आ रहा है। भाजपा के मध्यप्रदेश इकाई यह जिम्मेदारी है की जब उनके ही दल के प्रधानमंत्री साफ-साफ तौर पर कह दिया कि किसी की मनमानी नहीं चलेगी और उसे दल से बाहर कर देने चाहिए तब एमपी भाजपा की यह फर्ज बनता है कि आकाश को उसके घर जाने का रास्ता बताये ताकि दल में अनुशासन का माहौल बना रहे और कोई अन्य विघायक भी इस तरह की हरकत न करें।
लोकतंत्र मतदाता दलों के प्रत्याशी पर विश्वास रखते हुए अपना किमती वोट देते है। उनसे ये आशा रखते है कि जीतने के बाद वह ऐसी कुछ हरकत न करें कि जिससे मतदाताओं का सिर भी झुक जाये, लेकिन हो रहा कुछ और है जैसा कि बंगाल में टीएमसी के विधायक भाजपा में शामिल हो गये । टीआरसी के विधायक भाजपा में शामिल हो गये। गोवा में कांग्रेस के 10 विधायक भाजपा में शामिल हो गये। गुजरात में भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है। हालाकि गुजरात पैटन यह है कि कांग्रेस के विधायक सदन से इस्तीफा देकर भाजपा में जा रहे है। जबकि अन्य राज्यों में इस्तीफा दिये बगैर ही भाजपा में शामिल हो गये है। क्या यह मतदाताओं से धोखाधड़ी या विश्वासघात नहीं कह सकते क्या? क्योंकि मतदाता ने उसे किसी दल के प्रत्याशी के रुप में चुनकर भेजा है और जब वो ही दूसरे दल में इस्तीफा दिये बगैर चला जाये तो उसे क्या कहेंगे?