पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट को कस्टोडियल डेथ के 30 साल पुराने केस में हुई उम्रकैद की सजा का मामला देश में चर्चा का विषय बना हुआ हैं। कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। इस बीच संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट ने जीएनएस (नेशनल न्यूज एजेंसी) को दिए इंटरव्यू में कहा कि पूर्व आईपीएस और उनके पति संजीव भट्ट को मिली उम्र कैद की सजा का निर्णय “मिसकैरेज ऑफ जस्टिस” है। संजीव को यह सजा इसलिए मिली है, क्यों कि उन्होंने गुजरात में हुए गोदरा कांड व साप्रदायिक दंगों की जांच के लिए बने नानावती कमीशन के सामने 2011 में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बयान दिए थे।
हमारे लिए तब से परेशानियों का दौर शुरू हो गया था। इसके बाद भट्ट को दूसरे गलत आरोप लगाकर निलंबित कर दिया गया, फिर नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया, मेरा घर तोड़ दिया गया और अब हमें पूरी तरह तोड़ने के लिए संजीव को एक ऐसे 30 साल पुराने कस्टोडियल डेथ केस में उम्र कैद की सजा हुई है, जिसमें उन्होंने किसी को गिरफ्तार ही नही किया था, कोई उनकी कस्टडी में नहीं रहा था।
अहम गवाहों के बयान कराए बगैर सुना दी गयी सजा
श्वेता भट्ट ने आरोप लगाया कि कोर्ट में फेयर ट्रायल नहीं हुई। हमें डिफेंस के विटनेस बुलाने का मौका नहीं दिया गया, अनुसंधान में 300 गवाह के बयान हुए थे, लेकिन कोर्ट में मात्र 30 गवाहों के बयान करवाकर संजीव को सजा सुना दी गयी। हमारा पक्ष सुना ही नहीं गया। राजनीतिक दबाव में केस को जल्दबाजी में निपटाया गया और जो अहम गवाह थे, उनके बयान कराए बगैर ही संजीव को सजा सुना दी गयी।
श्वेता भट्ट ने कहा कि अमित शाह के निर्देश पर गुजरात में कई एनकाउंटर हुए, इसमें कई आईपीएस भी शामिल रहे। बाद में जब इन एनकाउंटर्स के फर्जी होेने का दावा हुआ तो इन आईपीएस पर मुकदमे हुए। लेकिन गुजरात सरकार ने इन आईपीएस पर केस चलाने के लिए सीआरपीएस की धारा 197 के तहत अभियोजन स्वीकृति नहीं दी। कोर्ट ने भी 197 की के तहत अभियोजन स्वीकृति नहीं होने पर इन आईपीएस को ट्रायल से पहले डिस्चार्ज किया। ऐसा इसलिए हुआ कि इन केस में अमित शाह थे। वहीं गुजरात सरकार ने मेरे पति संजीव भट्ट के लिए भी सीआरपीसी की धारा 197 के तहत अभियोजन स्वीकृति नहीं दी थी। इसके बावजूद उन पर केस चलाया गया और सजा भी सुना दी गयी।
भट्ट को सजा करवाकर सरकार अधिकारियों के सामने उदाहरण पेश करना चाहती है
श्वेता भट्ट ने दावा किया है कि संजीव भट्ट को सजा करवाकर राज्य और केन्द्र सरकार देश में काम कर रहे आईपीएस अधिकारियों के सामने एक ऐसा उदाहरण रखना चाहती है कि हमारे कहे अनुसार काम नहीं किया तो ऐसा होगा। श्वेता ने कहा अधिकारी डरे हुए हैं, सब तरफ डर का माहौल है। अधिकारी समझ नहीं पा रहे कि काम आखिर कैसे करें। कुछ करो तो दिक्कत, कुछ न करो तो दिक्कत। इस सरकार के रहते कोई काम हुए। सरकार बदली, उसे वो काम पसंद नहीं आए तो अधिकारी को उलझा देते हैं। मैं पूछती हूं ऐसे माहौल में कोई अधिकारी कैसे काम कर सकता है। हम अपनी बात तक नहीं रख सकते हैं, कुछ कह दिया तो दिक्कत, नहीं कहा तो दिक्कत। क्या यही लोकतंत्र है।
श्वेता ने कहा मुझे न्यायपालिका पर भरोसा है और इसलिए हाईकोर्ट जा रहे हैं। मैं मेरे पति को बाइज्जत बरी करवाकर रहूंगी। मेरी बातें सुनकर केस के तथ्यों को जानकार जनता निर्णय करे कि क्या सही है और क्या गलत। जनता की अदालत सबसे बड़ी अदालत होती है। अब मुझे जनता से उम्मीद है कि मुझे न्याय दिलाने में वो मेरा साथ देगी।