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पत्रकार की पिटाइ: भाजपा करे तो लीला…दूजा करे तो साला केरेक्टर ढीला…?!

लोकसभा में पेश राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक 2013 से अब तक देश में पत्रकारों पर सबसे ज्यादा हमले उत्तर प्रदेश में हुए है। 2013 से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर हमले के 67 केस दर्ज हुए हैं। दूसरे नंबर पर 50 मामलों के साथ मध्य प्रदेश और तीसरे स्थान पर 22 हमलों के साथ बिहार है। इस दौरान पूरे देश में पत्रकारों पर हमले के 190 मामले सामने आए हैं। युपी में इस वक्त भाजपा की सरकार है और योगीजी प्रदेश के मुखिया है। एक चैनल के पत्रकार प्रशांत कनोजिया को योगीजी का कथित अपमान करने के आरोप में जेल में डाल दिया गया। युपी के ही शामली में एक घटना का कवरेज कर रहे पत्रकार की पुलिस द्वारा पिटाइ और उसके मूंह में पिशाब करने की घटना सत्तापक्ष भाजपा के लिये छोटी छोटी हो सकती है। योगी सरकार में ही एक चैनल को ताले लग गये क्योंकी वह जनता की आवाज उठा रही थी। भाजपा के नेतागण आये दिन इमरजन्सी की बातें कर के कांग्रेस की टीप्पणी करते रहते है। कांग्रेस भी कोइ दूध की धूली नहीं। तो भाजपा के कमल पर भी पत्रकारो का पिडा पहुंचाना और मारपिट करने का दाग लगे है। लेकिन भाजपा की यह नीति रही है की मैं करू तो लीला और अन्य करे तो साला केरेक्टर ढीला….!
बंगाल में भाजपा की एक महिला कार्यकर्ता नें वहां के सीएम ममता बनर्जी का प्रियंका चौपडा जैसा मीम बनाया तो ममता सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया तब बाजपा नें देश भर में ममतादीदी के खिलाफ हल्लागुल्ला शोर शराबा मचाया। दीदी को तानाशाह कहा गया। जब ऐसे ही एक मामले में योगी सरकार नें पत्रकार प्रशांत कनोजिया को जेल में डाला तब तो कीसी भाजपा के नेता ने योगी सरकार को ताना शाह नहीं कहा। और कहे भी कीस मूंह से। भाजपा सरकार में पुलिस या प्रशासन पत्रकारों की पिटाइ करे भाजपा को अच्ढा लगता है लेकिन जब कोइ गैर भाजपाइ सरकार भाजपा के कार्यकर्ता को जेल में डाले तो वह….? इमरजन्सी का आगे कर के अपने आप को बचाना ये अब आज के सोश्यल मिडिया और नेटयुग में संभव नहीं। आज तो तुरन्त ही प्रतिभाव मिलता है। एक चैनल को सिर्फ इसलिये ताले लगा देने पर मजबूर करना की वह सरकार के खिलाफ जनता की आवाज उठा रही थी…? क्या भाजपा सरकार में अपनी टीका टीप्पणी सुनने की हिंमत नहीं है क्या..?
पुलिस द्वारा पत्रकार की पिटाइ का विडियो देखने से पता चलता है की लोकतंत्र में पुलिस का चौथी जागिर पर कितना प्रेम है…! ऐसी पिटाइ कीसी पत्रकार नें पुलिसवाले की होती तो योगी सरकार क्या करती…? सोचिये भाजपा के नेतागण और दीदी की सरकार भी। चौथी जागिर कीसी को पसंद नहीं। मिडिया-प्रेस सरकार की वाह वाही के लिये नहीं है। वह जनता और सरकार के बीच की कडी है। यदि ये कडी तूट गइ तो जनता की आवाज सरकार और प्रशासन तक कौन पहुंचायेंगा…? बंगाल सरकार करे तो केरेक्टर ढीला और भाजपा की सरकार करे लीला…! पत्रकारबंधु अभी भी नहीं जागे तो इमरजन्सी से भी बुरा हाल हो सकता है। संगठन में शक्ति है। भाजपा की मोदी की ताकात संगठन है। मोदीजी अकेले कुछ नहीं कर सकते। वैसे ही पत्रकार-प्रेस या मिडिया एक बने। हम सब एक होंगे तो एक और एक ग्यारह बनेंगे। युपी की सरकार हो या ममता की। प्रेस-मिडिया पर हमला निंदनीय है। योगीजी को इस बारे में कछु कहने की हिंमत भाजपा के कीसी नेतागण में नहीं है ये कटु सत्य है। मिडिया खतरें मे है ये जान कर ये मानकर मिडियाकर्मी चले और सब एक हो तो कोइ भी सरकार मिडिया को हाथ लगाने की जुर्रत नहीं करेंगी। कीसी ने खूब कहा है- उठ जाग मुसाफिर भोर भइ अब रैन कहां जो सोवत है….सो सोवत है वह खोवत है…!

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