एससी-एसटी ऐक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश भर में दलितों के विरोध प्रदर्शन ने विपक्षी एकता को नई ताकत दे दी है । इसके साथ ही मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए एक नया हथियार भी मिला है, जिसे वह बीजेपी के खिलाफ इस्तेमाल कर सकती है । बता दें कि कर्नाटक में दलितों की १७ फीसदी आबादी है । विपक्षी दलों ने इस प्रदर्शन के जरिए यह साबित करने का प्रयास किया है कि बीजेपी दलितों को निशाना बना रही है । इसके चलते अब बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर इस ऐक्ट के प्रावधानों को कड़ा करने का भारी दबाव है । खास बात यह है कि विपक्ष दलित समुदाय के एक तबके में यह बात भरने में भी कामयाब रहा है कि उनके आरक्षण के अधिकार से छेड़छाड़ की जा रही है । यही नहीं बीते दिनों कर्नाटक के बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े के उस बयान को भी कांग्रेस भुनाने में जुटी है, जिसमें उन्होंने संविधान में बदलाव की बात कही थी । संविधान में बदलाव की बात को कांग्रेस दलित समुदाय के बीच आंबेडकर के अपमान के तौर पर प्रचारित कर रही है ।
बीजेपी के रणनीतिकारों के लिए यह चिंता का विषय है कि जब भी उसने दलितों को रिझाने की कोशिश की है, तब उसे किसी न किसी नए विवाद से गुजरना पड़ा है । २०१४ में दलितों के भारी समर्थन से सत्ता तक पहुंचने वाली बीजेपी को रोहित वेमुला, ऊना कांड, सहारनपुर हिंसा से लेकर तमाम घटनाओं में बैकफुट पर जाना पड़ा है । बीएसपी चीफ मायावती ने इस स्वर को बढ़ाते हुए कहा कि बीजेपी की सरकार में दलितों और पिछड़ों के अधिकारों को नजरअंदाज किया जा रहा है ।