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कदाचित् कस्यचित् मुखं मा पश्य !
प्रत्युत् तस्य मनः पश्य । यतः यदि
श्वेतवर्णे निष्ठा अभविष्यत् तर्हि
लवणं व्रणानाम् औषधम् अभविष्यत् ॥
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कभी किसी के चहरे को मत देखो बल्कि उसके मन को देखो,क्योंकि अगर सफेद रंग में वफा होती’ तो नमक जख्मों की दवा होती ।

? जयतु संस्कृतम्॥जयतु भारतम्॥?

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