टॉप सैन्य अधिकारीयों ने डिफेंस बजट को लेकर फंड की कमी पर संसद की स्थायी समिति (रक्षा) से गहरी चिंता जताई है । अफसरों ने कहा है कि डिफेंस बजट में मामूली वृद्धि से शायद ही महंगाई पर कोई असर पड़ता हो । दरअसल, उनकी चिंता इस बात को लेकर है कि भारतीय सशस्त्र बलों में अत्याधुनिक हथियारों और पुराने उपकरणों के बीच बड़ा असंतुलन बना हुआ है ।
मॉर्डन मिलिटरी के पास समान्य तौर पर उसके हथियारों और उपकरणों का ३० प्रतिशत स्टेट-ऑफ-द-आर्ट टेक्नॉलजी कैटिगरी, ४० प्रतिशत करंट टेक्नॉलजी और ३० प्रतिशत विटेज कैटिगरी का होना चाहिए । चिंता की बात यह है कि १२ लाख जवानों से भी बड़ी भारतीय सेना के पास ८÷ स्टेट-ऑफ-द-आर्ट, २४÷ करंट और ६८÷ विंटेज कैटिगरी के हथियार मौजूद हैं, जबकि सेना को पाकिस्तान से लगातार फायरिंग और घुसपैठ का सामना करना पड़ रहा है । पिछले साल डोकलाम प्रकरण के बाद चीन के साथ भी तनाव काफी बढ़ गया था । सेना इसे २ मोर्चे पर जंग के हालात की तरह से ले रही है और यह खतरा कभी बरकरार है । रक्षा मामलों की संसदीय समिति को सेना के उपप्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल शरत चंद ने कहा, २०१८-१९ के बजट ने हमारी उम्मीदों को धराशायी कर दिया । मामूली वृद्धि मुद्रास्फीति के लिए मुश्किल से जिम्मेदार होती है और करों के प्रबंध की भी जरूरत नहीं होती है ।
गौरतलब है कि आधुनिकीकरण के लिए २१,३३८ करोड़ रुपये आवंटित किए गए है । सेना के पास पहले से चल रही उसकी १२५ योगजनाओं और डीप्स के लिए जरूरी २९,०३३ करोड़ रुपये की किस्तों के लिए भी पर्याप्त धन नहीं है । इसमें उड़ी आतंकी हमले और २०१६ में सर्जिकल स्ट्राइक्स के मद्देनजर हथियारों की खरीद प्रक्रिया भी शामिल है, जिससे लगातार १० दिनों तक जंग के हालात के लिए हथियार और गोला-बारूद रिजर्व रखा जा सके ।