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नॉकआउट में विराट कोहली को आउट करना बाएं हाथ का खेल

वनडे करियर में २३६ मैच, ११२८६ रन, ५९.४० औसत, ४१ सैकड़ा और ५४ हाफ सेंचुरी । क्रिकेट के एक आम जानकार के लिए भी इतने सारे स्टैट्‌स यह गेस करने के लिए पर्याप्त हैं कि किस खिलाड़ी का जिक्र हो रहा है । जी हां, यह टीम इंडिया के कप्तान और इस दौर के दुनिया के नंबर वन बैट्‌समैन विराट कोहली के आंकड़े हैं । विराट ने हर तरह के अटैक और हर तरह की पिच व माहौल में रन बनाए हैं और अपना लोहा मनवाया है । उनका विकेट किसी भी बोलर के लिए प्राइज विकेट होता है । समझा जाता है कि अगर उन्हें जल्दी आउट नहीं किया गया तो वह टिककर खेलेंगे और फिर सेंचुरी बनाकर या टीम की जीत की गारंटी दिलाकर ही मैदान से लौटेंगे । ऐसे खिलाड़ी के लिए अगर यह कहा जाए कि बड़े मंच पर और नॉकआट मैचों में उसका विकेट निकालना बाएं हाथ का खेल है तो एकबारगी भरोसा नहीं होगा । मगर, आंकड़े गवाही देते हैं कि विराट के लिए मेजर टूर्नमेंट्‌स के नॉकआउट मैचों में अपना स्वाभाविक खेल दिखाना मुश्किल होता है । अपने करियर के तमाम बड़े नॉकआउट मैचों में वह एक हाफ सेंचुरी भी नहीं बना सके हैं । नॉकआउट मैचों में विराट का विकेट तिलकरत्ने दिलशान से लेकर डेविड हसी तक लिया है । इन खिलाड़ियों को किसी भी तरह आला दर्जे के बोलर्स में शामिल नहीं किया जा सकता । टीम इंडिया के पिछले तीन बड़े नॉकआउट मैचों पर गौर करें तो इनमें विराट लेफ्ट आर्म पेसर्स के शिकार हुआ हैं । ऑस्ट्रेलिया में हुए २०१५ वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में विराट को मिचेल जॉनसन ने आउट किया था । तब वह १३ गेंदों पर महज १ रन बना सके थे । इसी तरह इंग्लैंड में २०१७ में खेले गए चैंपियंस ट्रोफी के फाइनल में विराट पाकिस्तान के बाएं हाथ के तेज गेंदबाज मोहम्मद आमिर के शिकार बने थे । तब उन्होंने ९ गेंदों पर केवल ५ रन जोड़े थे । इस बार वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में न्यू जीलैंड के लेफ्ट आर्म पेसर ट्रेंट बोल्ट ने १ रन के निजी स्कोर पर उनको पिविलियन भेजा था । ट्रेंड और आंकड़े इस ओर संकेत करते हैं कि विराट किसी बड़े टूर्नमेंट के नॉकआउट मैचों में अपने ऊपर अतिरिक्त दिमागी प्रेशर डाल लेते हैं । इस वजह से वह अपना सहज खेल नहीं खेल पाते । मनोवैज्ञानिक वजह ही हो सकती है कि विराट एक ही तरह के बोलर के शिकार होते हैं । न्यू जीलैंड के खिलाफ वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल के बाद विराट से तरह की नाकामियों के बारे में जिक्र किया गया तो उनका कहना था कि कोई भी खिलाड़ी बड़े मौके पर अपना बेस्ट देना चाहता है । ऐसा नहीं होने पर निश्चित तौर पर उसे निराशा होती है । जाहिर है इस निराशा से उबरने और बिग टूर्नमेंट्‌स में अपने प्रदर्शन को सुधारने के लिए विराट को अब लंबा इंतजार करना पड़ेगा ।

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