भगवान जगन्नाथजी, बहन सुभद्राजी और भाई बलराम नगर की परिक्रमा करके निजमंदिर में वापस आने के बाद सोमवार को सुबह में मंदिर के महंत दिलीपदासजी महाराज ने भगवान की नजर उतारने के बाद सभी साधु-संतों और भक्तों की उपस्थिति में मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश कराया था और वैदिक शास्त्रोक्त विधि के अनुसार, भगवान जगन्नाथजी, बहन सुभद्राजी और भाई बलराम की तीनों मूर्तियों का मूल स्थान पर स्थापित कराया गया था । महंत दिलीपदासजी महाराज ने भगवान की आरती करके उस समय में निजमंदिर फिर एकबार जय जगन्नाथ, जय रणछोड-माखणचोर के नारे से गूंज उठा था और सुंदर भक्तिमय माहौल छाया हुआ था । प्रातःकाल सुबह से बड़ी संख्या में भक्त जगन्नाथ मंदिर में दर्शन करने के लिए पहुंचे थे । गत दिन देर शाम को ८.३८ मिनट पर भगवान जगन्नाथजी और बहन सुभद्राजी और भाई बलराम के रथ निजमंदिर में वापस आने के बाद महंत दिलीपदासजी महाराज द्वारा भगवान की रथ में ही शयनआरती की गई थी इस अवसर पर माहौल भक्तिमय हो गया था । हालांकि भगवान को रातभर मंदिर प्रांगण में रथ में ही रात गुजारना पड़ा था । इसके पीछे पौराणिक कथा है कि, लक्ष्मीजी को पूछे बिना भगवान जगन्नाथजी, बहन सुभद्राजी और भाई बलराम को लेकर नगरयात्रा पर निकल जाते है, इसी वजह से लक्ष्मीजी नाराज हो जाती है और इसी वजह से रातभर वह भगवान के लिए दरवाजा नहीं खोलती है । जिसकी वजह से भगवान को रात रथ में ही गुजारना पड़ता है । दूसरे दिन भगवान बहुत विनंती करके लक्ष्मीजी को मनाने में सफल हो जाते है और उनको प्रवेश की मंजूरी देते है । जिसकी वजह से भगवान को पूरी रात रथ में गुजारने के बाद सुबह में महंत दिलीपदासजी महाराज ने भगवान का नजर उतारा गया था । सभी साधु-संतों और भक्तों की उपस्थिति में सावधानीपूर्वक भगवान जगन्नाथजी, बहन सुभद्राजी और भाई बलराम की तीनों मूर्तियों को फिर से निजमंदिर के गर्भगृह में प्रवेश कराकर वैदिक और शास्त्रोक्त विधि के अनुसार स्थापना की गई थी । निजमंदिर में परंपरा के अनुसार, फिर से भगवान की पूजा और आरती का प्रारंभ देखकर भक्तों में अलग प्रकार का उत्साह देखने को मिलता था । मंदिर प्रांगण फिर एकबार जय जगन्नाथ, जय रणछोड-माखणचोर के नारे से गूंज उठा था और सुंदर भक्तिमय माहौल छाया हुआ था ।