Aapnu Gujarat
બ્લોગ

मंत्री बनाये वो मेरा अन्नदाता, भाड में जाए मतदाता- मै तो चला जिधर चले सत्ता..!

सावन का मौसम चल रहा है। उत्तर भारत में कावड़ियो मेला भी शुरू हो गया है। गंगा जल लेकर शिवजी को जलाभिषेक करेंगे। राजनीति में भी कहते है की atm और paytm जोरो पर है। सावन के झूले पड़ गये है। कई विधायक मंत्री बनने के लिए झुला झूल रहे। उन्हें झुलाया जा रहा है। मजे की बात तो ये है की कर्नाटक के नाटक में एक दल ने सरकार बनाने के लिए अन्य दलों के विधायकों को चारा डाला और पाला बदल कर वे बकरी की तरह बै…बै… रटते हुए दौड़े। जिस दल में अन्य दल के यानि कोंग्रेस के विधायक केसरी ब्रिगेड में गयें तो मध्यप्रदेश में केसरी के दो विधायक पंजे के साथ जुड़ गये। क्या ये नेहले पे देहला है या जैसे को तैसा…? गुजरात में जूनागढ़ महानगर पालिका के चुनाव में जूनागढ़ कोंग्रेस के शहर प्रमुख खुद भाजपा में चले गये। यहाँ कोंग्रेस को ५९ सीटों में से सिर्फ एक ही सीट मिली जब की शरद पवार की पार्टी एनसीपी को चार सीते पहलीबार मिली। कोंग्रेस का यह एक ही विधायक कभी भी पाला बदल ले तो कह नहीं सकते। क्योंकि सावन का महिना है और paytm करे शोर है….?
महाराष्ट्र में एनसीपी का मुखिया सचिन आहिर शिवसेना में जा पहुंचे। यानि की कोंग्रेस के केसरी में, केसरी के कोंग्रेस में, एनसीपी के शिवसेना में और फिर शिवसेना के केसरी में या कोंग्रेस में….? आयाराम…गयाराम ….मै यहाँ तू वहां, लेकिन मतदाता है कहाँ….? चुनाव में इन विधायको ने ये नहीं कहा था की जितने के बाद वे किसी भी दल में जा सकते है…! उस वक्त तो क्या जोर क्या जुस्सा था सामनेवाले दल को फटकार लगाने में। लेकिन जितने के बाद किसी चाणक्य ने गड्डी और हड्डी क्या दिखाई की भाड़ में जाए मतदाता में तो चला जिधर है सत्ता….! और कोई सरकार गिर गई तो किसी की फिर से सीएम बनने की सियासी इच्छा पूरी हुई। जिन्हों ने पाला बदला उन लालचीयो को केसरीनंदन सबक सिखाये। केसरी से कोई पंजे की जा ही कैसे सकता है….?! कोई हमरे पास आये तो वेलकम… लेकिन अपना कोई जाना नहीं चाहिए….! मगर भोपाल के बजरिया में ऐसा कुछ कमाल किया कमल के नाथ ने की दो केसरी कमल का फूल फेंक कर सच्चे धागे की तरह दौड़े चले आये..! ये अब मत्री बने तो कहा नहीं जा सकता।
इस सियासी खेला में एक दिन का राजा मतदाता से तो कोई कपड़ा लेकर पूछने भी नहीं गया की हे, मतदाता, आपने मुझे जिस सिम्बल में चुना उसे छोड़कर वे जिस दल के खिलाफ लड़े उसमे जा रहे है….! बाय बाय टा..टा….!!! क्या अजब खेला है भाई। क्या ये पैसा का खेला है या प्रेम का….? कोंग्रेस के विधायक कमजोर मिटटी के निकले तो केसरी भी कमजोर और सत्ता के लालची निकले। गुजरात की तो बात ही कछु ओर है। मंत्री बनने के लिए मतदाताओ से दगा करना उचित है…? ये सवाल अब पुराना हो गया। अब तो जब ऐसी खबर आती है की फलां फलां पार्टी का विधायक सामने चला गया तो लोग पान- मसाला गुटका खैनी मसलते मसलते कहते है- अरे ए बबुवा, कितने में गया….?! पहले देश को लगता था की पंजा ही कमजोर है लेकिन भोपाल के बाद लग रहा है की कमल की पंखुड़िया भी गिर सकती है। चलने दो..आने दो…जाने दो…जब देश ही ऐसा है तो भला कोई क्या करे। अय मेरे वतन के विधायको जरा जेब में भर लो, (पानी की मनी)…? जो शहीद (मतदाता) हुए उनकी बस देते रहो कुरबानी…!

Related posts

‘પદ્માવત’ : પરિસ્થિતિ માટે આપણા રાજકારણીઓ જવાબદાર

aapnugujarat

EVENING TWEET

aapnugujarat

મહારાષ્ટ્રમાં ઔવેસી – આંબેડકરનું ગઠબંધન ભાજપ માટે લાભદાયક

aapnugujarat

Leave a Comment

UA-96247877-1