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मोदी-ट्रंप प्रेमालाप

ओसाका में हुई नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की भेंट से यह आशा बंधती है कि भारत-अमेरिका संबंधों में इधर पैदा हुई अनिश्चितता ज्यादा चिंताजनक नहीं है। दोनों राष्ट्रों के बीच कुछ मुद्दों पर मतभेद तो जरुर रहेगा लेकिन मनभेद नहीं होगा। जहां तक अमेरिकी निर्यात पर तटकर बढ़ाने की बात है, ट्रंप ने ओसाका रवाना होने के पहले एक काफी सख्त टवीट किया था। उन्होंने कहा था कि भारत अमेरिकी चीजों पर टैक्स बढ़ाना बंद करे लेकिन ओसाका में मोदी से मिलने के बाद अमेरिकी प्रवक्ता ने कहा कि दोनों देशों के अफसर इस मामले को बातचीत से हल करेंगे। सच्चाई तो यह है कि अमेरिका-चीन व्यापार में चल रहा तनाव बढ़ गया तो विश्व-व्यापार में कम से कम 500 बिलियन डाॅलर का फर्क पड़ जाएगा। चीन और अमेरिका, दोनों देशों को नए आयातक और नए निर्यातक खोजने होंगे। ऐसे में भारत की चांदी हो सकती है। उस स्थिति में तटकर का विवाद अपने आप दरी के नीचे खिसक जाएगा। जहां तक रुस से एस-400 मिसाइल खरीदने की बात है, अमेरिकी विदेश मंत्री पोंपियो की उपस्थिति में भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने साफ-साफ कह दिया था कि भारत अपने राष्ट्रहित की अनदेखी नहीं करेगा। क्या पोंपियो ने यह बात ट्रंप को नहीं बता दी होगी ? ट्रंप ने व्यावहारिकता दिखाई और इस मुद्दे को मोदी के साथ उठाया ही नहीं। ट्रंप ने आजकल 5 जी की चीनी  तकनीक के बहिष्कार का बीड़ा उठा रखा है, लेकिन इस मामले में भी मोदी ने ट्रंप को नम्रतापूर्वक समझा दिया है कि भारत इसका इस्तेमाल करना चाहता है ताकि इस ताजातरीन तकनीक का फायदा करोड़ों लोग उठा सकें। ईरानी तेल के बहिष्कार पर भी मोदी ने ट्रंप को बता दिया कि फारस की खाड़ी में भारत की कितनी ज्यादा फंसावट है। हमारे लाखों लोग उन देशों में कार्यरत हैं। उस क्षेत्र में शांति रहना कितना जरुरी है। इस मामले में पोम्पियो ने तेल की सप्लाय के बारे में भारत को पहले ही आश्वस्त कर दिया है। ट्रंप ने भी मोदी से कहा है कि वे भी भरसक कोशिश करेंगे कि इस इलाके में शांति और स्थिरता बनी रहे। अब देखना यही है कि ओसाका में ट्रंप आतंकवाद के खिलाफ क्या रवैया अख्तियार करते हैं। वे ईरान को घोर आतंकवादी राष्ट्र बताते हैं और पश्चिम एशिया और कुछ अफ्रीकी देशों में चल रही घमासान मुठभेड़ों के लिए भी उसी को जिम्मेदार ठहराते हैं लेकिन अब देखना यह है कि क्या पोम्पिओ की तरह वे भी पाकिस्तान को आतंकवाद का पिता घोषित करेंगे और ओसाका के 20 सदस्यीय इस सम्मेलन को आतंकवाद के विरुद्ध कुछ ठोस कदम उठाने के लिए मजबूर करेंगे। मुझे थोड़ा आश्चर्य है कि मोदी ने ट्रंप से यह क्यों नहीं पूछा कि सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता दिलवाने के लिए अमेरिका क्या कर रहा है ? वहां चीन की काट करने के लिए यह तुरुप का पत्ता साबित हो सकता है। 

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