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कास्टिक सोडा और सोडा ऐश पर आयात शुल्क 12.5% करने की मांग

देश के एल्कली उद्योग ने कास्टिक सोडा और सोडा ऐश पर आयात शुल्क को वर्तमान के 7.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत करने की मांग की है जिससे घरेलू उद्योग को सस्ते आयात की चुनौतियों से निपटते हुए प्रतिस्पर्धा में बने रहने का समान अवसर मिल सके। एल्कली मैन्युफैक्चरर्स एसोसियेशन ऑफ इंडिया (एएमएआई) ने वर्ष 2019-20 के आम बजट से पहले यह मांग की है। संगठन के अध्यक्ष जयंतीभाई पटेल ने कहा कि सालाना करीब तीन हजार करोड़ रुपए मूल्य का कास्टिक सोडा और सोडा ऐश का आयात किया जाता है। इन उत्पादों की मांग को स्थानीय उत्पादन के जरिए आसानी से पूरा किया जा सकता है। इसके लिए घरेलू उद्योग के पास पर्याप्त क्षमता है लेकिन सस्ते आयात के कारण घरेलू उद्योग की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं हो रहा है। 
पर्याप्त घरेलू क्षमता होने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ मानकों के अनुरूप उत्पाद होने के बाद भी वित्त वर्ष 2018-19 में कास्टिक सोडा के मामले में आयात के जरिए घरेलू मांग का 15 प्रतिशत पूरा किया गया जबकि 20 प्रतिशत सोडा ऐश की आपूर्ति आयातित उत्पादों से पूरा किया गया। उन्होंने कहा कि पिछले चार साल में कास्टिक सोडा की मांग में सालाना औसतन 5 प्रतिशत और सोडा ऐश की मांग में सालाना 7 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है। घरेलू उद्योग ने क्षमता बढ़ाने और नई टेक्नोलॉजी को अपनाने में पर्याप्त निवेश किया है। हालांकि सस्ते आयात से मांग में हो रही बढ़ोतरी को पूरा कर लिया जा रहा है, जिससे घरेलू स्तर पर क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं हो रहा है और रोजगार के अवसर भी नहीं बढ़ रहे हैं। पटेल ने कहा कि कास्टिक सोडा उद्योग बिजली पर निर्भर है। इसके उत्पादन की कुल लागत में 60 प्रतिशत हिस्सा बिजली का होता है। बिजली पर लगने वाले विद्युत शुल्क और सेस (कैप्टिव पावर जेनरेशन समेत) जीएसटी के अंतर्गत इनपुट क्रेडिट के दायरे में नहीं आते हैं, जिससे ये कर भी उत्पादन की लागत में जुड़ जाते हैं।

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