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जनसंख्या पर कठोर निर्णय का वक्त

प्राचीन लेखक तेर्तुल्लियन ने दूसरी सदी में लिखा था कि पृथ्वी की क्षमता के मुताबिक ही आबादी होना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस पृथ्वी पर चार अरब लोग ही बेहतर जीवन जी सकते हैं और पृथ्वी अधिकतम सोलह अरब से अधिक आबादी का भार वहन नहीं कर सकती। भारत में जनसंख्या के ताजा आकड़े सामने आए है वह भारत सरकार और जनता को इस बाॅत के लिए संकेत दे रहे है कि अब सरकार और जनता को कठोर निर्णय लेने होगे। थामस माल्थोस जैसे विद्वान ने भी कहा था कि पृथ्वी के संसाधन सीमित हैं किन्तु इसकी चिन्ता किये बगैर सीमित संसाधनों की तुलना में मानवजाति की आबादी कई गुना बढ़ जाएगी, अर्थात जनसंख्या वृद्धि दर की विस्फोटक स्थिति के कारण पृथ्वी की अन्तिम भारधारक क्षमता कभी भी ध्वस्त हो सकती है। यह भी माना जा रहा है कि वर्ष 2050 तक दुनिया की आबादी आठ अरब से बढ़कर साढ़े दस अरब तक पहुँच जाएगी, क्योंकि प्रतिवर्ष साढ़े सात करोड़ की दर से पृथ्वी पर आबादी का विस्तार हो रहा है। वर्ष 2050 तक दुनिया में सात देश ऐसे होंगे जिनके पास दुनिया की आधी आबादी होगी। जाहिर है, अगर सक्षम कार्रवाई नहीं की गई तो उन सात देशों में पहले क्रम पर भारत ही होगा। बढ़ती आबादी के बढ़ते दबाव की वजह से एक ओर जहाँ जल, जमीन, जंगल और आजीविका के लिये संघर्ष बढ़ेंगे वहीं दूसरी ओर आवास, शिक्षा, चिकित्सा, भोजन, नगर-नियोजन तथा अन्य दैनिक जीवन में उपयोगी चीजों की उपलब्धता और माँग का भी विस्तार होगा। आबादी बढ़ने और संसाधन न बढ़ने से दुनिया के कई देश निरन्तर बिगड़ते पर्यावरण, खाद्य-आपूर्ति, ऊर्जा एवं जलसंकट, यातायात के संसाधन, भुखमरी, बेरोजगारी, अपराध सहित आत्महत्या और आतंकवाद जैसी कई गम्भीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं। वैश्विक स्तर पर आक्रामक उपभोग के चलते ऊर्जा की खपत में अनाप-शनाप वृद्धि हुई है जिसके चलते दुनिया के अनेक नगर और महानगर जलवायु परिवर्तन व पर्यावरण प्रदूषण के शिकार होते जा रहे हैं, इन्हें ‘हीट आइलैंड’ तक भी कहा जाने लगा है। भारत में जनसंख्या का स्तर तेजी से बढ़ता जा रहा है. 2027 के करीब चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत दुनिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन सकता है। भारत की जनसंख्या में 2050 तक 27.3 करोड़ की वृद्धि हो सकती है. इसके साथ ही भारत शताब्दी के अंत तक दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बना रह सकता है. संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग पॉपुलेशन डिविजन ने द वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रोस्पेक्ट 2019 हाइलाइट्स (विश्व जनसंख्या संभावना) मुख्य बिंदु प्रकाशित किया है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अगले 30 वर्षों में विश्व की जनसंख्या दो अरब तक बढ़ने की संभावना है। 2050 तक जनसंख्या के 7.7 अरब से बढ़कर 9.7 अरब तक पहुंच जाने का अनुमान है। इस अध्ययन के मुताबिक विश्व की जनसंख्या इस शताब्दी के अंत तक करीब 11 अरब तक पहुंच जाने का अनुमान है। नयी रिपोर्ट में बताया गया है कि 2050 तक ऊपर बताए गए वैश्विक जनसंख्या में जो वृद्धि होगी उनसे में से आधी वृद्धि भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इथियोपिया, तंजानिया, इंडोनेशिया, मिस्र और अमेरिका में होने की अनुमान है। जबकि दो साल पहले संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी 2017 की विश्व जनसंख्या रिपोर्ट में अनुमान लगाया था कि भारत की जनसंख्या लगभग 2024 तक चीन से आगे निकल जाएगी। 2015 में अनुमान लगाया था कि भारत 2022 तक चीन की तुलना में अधिक आबादी वाला बन जाएगा। फिलहाल चीन 143 करोड़ और भारत 137 करोड़ लोगों के साथ लंबे समय से दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले देश बने हुए हैं। इन दोनों ही देशों में वैश्विक जनसंख्या की क्रमशरू 19 और 18 फीसदी आबादी शामिल है।इस रिपोर्ट के बाद योग गुरू रामदेव यह कहना कि ‘‘ आबादी पर काबू पाना है तो दो बच्चों के बाद पैदा होने वाले बच्चे के हर अधिकार छीन लेना चाहिए ’’ कही से गलत नही है।आबादी का गणित हमेशा से दुनिया को बदलता रहा है। लेकिन इसकी मौजूदा चुनौतियां ज्यादा बड़ी हैं। खासकर इसलिए भी कि पर्यावरण का बदलाव ऐसे दौर की ओर जाने लगा है, जिसके बारे में माना जा रहा है कि संसाधन लगातार कम हो सकते हैं, और सबसे बड़ी दिक्कत है कि खाद्य संकट काफी उग्र रूप में सामने आ सकता है। ऐसे दौर में, संयुक्त राष्ट्र ने विश्व आबादी पर अपनी जो ताजा रिपोर्ट पेश की है, वह कई तरह की चिंताएं पैदा करती है और कई तरह के खतरों की ओर भी इशारा करती है। अगर हम सिर्फ भारत के आंकड़े ही लें, तो यह रिपोर्ट बताती है कि अगले 30 साल में हमारे देश की आबादी लगभग दोगुनी होने जा रही है। अभी यह आबादी एक अरब, 40 करोड़ के आस-पास है, जो इस सदी के उत्तरार्द्ध के शुरू होने तक दो अरब, 70 करोड़ की संख्या को पार कर चुकी होगी। जहां तक दुनिया की सबसे बड़ी आबादी होने का मामला है, तो यह काम हम अगले आठ साल में ही कर लेंगे। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2027 तक भारत आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा। इन आंकड़ों के साथ जो चिंताएं जुड़ी हुई हैं, वे परेशान करने वाली हैं। वैसे तो ये सवाल हमेशा से उठाए जाते रहे है कि देश की बहुत सी समस्याएं उसकी अधिक आबादी के कारण हैं या उसकी प्रशासनिक विफलता के कारण। अब जब हम चीन को पीछे छोड़ने की तरफ बढ़ रहे हैं, तो इस मामले में हमें चीन की ओर देखना होगा। पिछले कुछ समय में चीन ने अपने यहां गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से निपटने की कोशिश की है और बहुत बड़ी कामयाबी भी हासिल की है। चीनी शासन तंत्र की अपनी कई समस्याएं हो सकती हैं और शायद वह भी अभी इन समस्याओं से पूरी तरह मुक्त नहीं हुआ है, लेकिन भारत में जो हुआ है, उसके मुकाबले चीन की सफलता काफी बड़ी है। जरूरी यह भी है कि यह रास्ता आधुनिक हो, देश-समाज को आगे ले जाने वाला हो, पीछे धकेलने वाला नहीं। हमारे लिए गरीबी-बेरोजगारी ही नहीं, इनसे जन्मी कुपोषण जैसी समस्याएं भी बहुत बड़ी हैं। जब भी देश में जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर वैचारिक विमर्श प्रारंभ होता है, तो कुछ लोगों की प्रतिक्रिया इस प्रकार होती है जैसे कि उनका हक छीना जा रहा हो। कुछ लोग इतने असहिष्णु हो जाते हैं मानो की उनके निजी जीवन पर हमला किया जा रहा हो। वहीं, एक बुद्धिजीवी वर्ग इसे धार्मिक रूप रंग देकर जरूरी मुद्दों के प्रति सामाजिक जागरूकता को भटकाने का प्रयास करता है। लेकिन जनसंख्या बृद्धि की समस्या इन सभी तर्कों से ऊपर है। जनसंख्या विस्फोट से संसाधनों की अपर्याप्तता के कारण उत्पन्न हुई समस्याओं का असर सब पर पड़ेगा। चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो। जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर देश में बड़ी-बड़ी योजनाएं बनीं। अब तक सरकारें जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोई ठोस नीति बनाने के बजाय केवल नारों और स्लोगनों से ही काम चलाते आई हैं। ‘ हम दो हमारे दो ‘ जैसे नारों से लेकर परिवार नियोजन के सरकारी विज्ञापनों से बड़े दृ बड़े अभिनेता पैसा कमा कर चले गए, लेकिन जनसंख्या वृद्धि पर कोई असर नहीं हुआ। हालांकि विश्व के संदर्भ में देखें, तो दुनिया में कई ऐसे देश भी हैं, जहां समस्या भारत से कहीं ज्यादा गंभीर है। ऐसे संकट किसी एक देश तक सीमित नहीं रहते, उनका दबाव पूरी दुनिया को महसूस होता है। इसलिए देश की सरकार और जनता को बढ़ती जनसंख्या रोकने के लिए कठोर निर्णय लेने का वक्त है।

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