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मोदी के साथ खेलना बच्चो का खेल नहीं…मेनकाजी, सुलतानपुर की सेवा करे स्मृति की तरह..!

भारत सरकार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में फिर एक बार नई सरकार नईं आशाओं के साथ, नये भारत के निर्माण के लिए चल पड़ी है। ३० मई का दिन भारत के राजनितिक इतिहास में सुवर्ण अक्षरों से लिखा जायेंगा। इसी तरह कई ऐसे मंत्रीगण जो मोदी सरकार -१ में थे लेकिन अब नहीं। मोदी सरकार-2.0 में जो नहीं है उसमे अनुप्रिया पटेल, राजय्वार्धन राठोड, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली के साथ नेहरु-गाँधी परिवार की बहु मेनका गाँधी भी है। मेनका और उनके पुत्र वरुण का राजनितिक लालनपालन भाजपा ने और मोदीजी ने किया। वर्तमान चुनाव के नतीजो के बाद मेनका ने कोंग्रेस के अध्यक्ष और अपने भतीजे राहुल पर तंज कसा था की राजनीति कोई बच्चो का खेल नहीं। ये वही मेनका गाँधी है जो जानवरों से तो बेहद प्यार करती है लेकिन मतदाता को ग्राहक समझती है। चुनाव के दौरान मेनका का एक वीडियो वाइरल हुवा था जिसमे वे अल्पसंख्यक वर्ग के मतदाताओं को धमका रही है की मुझे आपके वोट नहीं मिले तो फिर मेरे पास नौकरी के लिए मत आना फिर मुझे भी सोचना पड़ेंगा की आपका काम करू या नहीं…! मेनका मानती है की एक हाथ वोट दो दुसरे हाथ मै काम करुँगी,(वर्ना नहीं..)
मेनका गाँधी ने ये कह कर भी मोदीजी को नाराज किया था की उन्हें मिले वोटो के हिसाब से वे गाँव को ए,बी,सी, डी का दरज्जा देकर उसके मुताबिक़ काम करुँगी। वैसे तो मेनकाजी सुलतानपुर से चुनाव जीत गई लेकिन कम मार्जिन से। नए मंत्रिमंडल की शपथ ग्रहण में मेनकाजी को जगह नहीं मिली। उन्हें पूरी उम्मीद तो होंगी ही की वे फिर से मंत्री बनेगी लेकिन मोदीजी की नई सरकार में मेनका नहीं है। इसे देख यदि कोई मेनकाजी को ये कहे की मेनकाजी, मोदीजी के साथ खेलना कोई बच्चो का खेल नहीं…! तो उसमे उन्हें बुरा नहीं मानना चाहिए। क्योंकि ये राजनीति है। जैसे स्मृति ईरानी ने हारने के बाद भी पांच साल अमेठी की सेवा चालू रखी और उन्होंने एक नया इतिहास रच दिया। जब की मेनकाजी तो पीलीभीत सीट छोड़ कर सुल्तानपुर चली गई। पीलीभीत निर्वाचन क्षेत्र में यदि उन्होंने पांह साल तहेदिल से सेवा की होती और जितने वोट मिलेंगे उतनी सेवा करुँगी….की निति अपनाई नहीं होती तो पीलीभीत से सुलतानपुर जाना नहीं पड़ता। लोकतंत्र में मतदाता कोई उपभोक्ता है क्या मेनकाओ के लिए….? वोट मिले तो काम वोट न मिले तो मुझे तेरे क्या काम….!
एक निर्वाचन क्षेत्र में सभी मतदाता एक सामान होते है। मेनकाजी ने संसद के सेन्ट्रल होल में मोदीजी का भाषण सुना तो होंगा ही। जिसमे मोदीजी ने कहा था की जिसने हमें वोट दीये वे भी हमारे और जिसने हमे वोट नहीं दिए वे भी हमारे ही है और उनके भी काम करना है सभी चुनकर आये सांसदों को। चुनाव में जिसने वोट नहीं दिया तो क्या वे किसी के दुश्मन हो गये…? क्या लोकतंत्र में मतदाता का अपना कोई मन-मत नहीं होता क्या…? फिर म्रेरे पास नौकरी के लिए मत आना…यही कहा था मेनकाजी ने मतदाताओ को वोट दो तो मतदाता मुझे प्यारो प्यारो लागे…वोट न देते मुंह चढा देना…ये कोई मंझे हुए खिलाड़ी की निसानी नहीं। लगता है की मोदीजी ने मेनकाजी को जगह नहीं देकर शायद उन्हें ये सन्देश दिया की स्मृति की तरह निर्वाचन क्षेत्र की सेवा करे फिर मंत्री बने..! मेनकाजी, सुलतानपुर की पांच साल तहे दिल से और किसी के प्रति वोटबेंक की राजनीति न रखते हुए और a,b,c,d न गिनते हुए सभी अखर एक सामान सभी मतदाता एक सामान मान कर सेवा करे क्योंकि निर्वाचन क्षेत्र की सेवा कोई राजनीति नहीं..!

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