मोदी सरकार की वापसी पर अमरीका भारत पर मेहरबान हो गया और उसने भारत को अपनी करंसी मॉनिटरिंग लिस्ट से बाहर कर दिया है। इस लिस्ट में कई बड़े व्यापारिक सहयोगी शामिल होते हैं। इसके अलावा स्विट्जरलैंड को भी इस लिस्ट से हटाया गया है। उसने चीन को झटका देते हुए उसके साथ जापान, साऊथ कोरिया, जर्मनी, इटली, आयरलैंड, सिंगापुर, मलेशिया और वियतनाम को शामिल किया है। अमरीकी वित्त मंत्रालय ने कहा कि भारत सरकार के कुछ कदमों से मौद्रिक नीति को लेकर उसकी आशंकाएं दूर हो गई हैं।
अमरीका के वित्त मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत को सूची से इसलिए बाहर किया गया है क्योंकि 3 क्राइटीरिया में से यह केवल एक में ही प्रतिकूल है। वह क्राइटीरिया है अमरीका के साथ बायलैटरल सरप्लस। 2017 में विदेशी मुद्रा भंडार की खरीद के बाद 2018 में सरकार ने लगातार रिजर्व बेचे। इससे विदेशी मुद्रा भंडार की कुल बिक्री जी.डी.पी. की 1.7 प्रतिशत पर पहुंच गई। इसमें कहा गया है कि भारत के पास आई.एम.एफ . मैट्रिक के हिसाब से पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत और स्विट्जरलैंड दोनों देशों के विदेशी मुद्रा खरीद में 2018 में गिरावट दर्ज की गई थी। ट्रेजरी रिपोर्ट के 40 पेज में कहा गया है कि स्विट्जरलैंड और भारत दोनों को ही एकतरफा दखल देने का जिम्मेदार नहीं पाया गया है इसीलिए इन दोनों देशों को निगरानी सूची से बाहर किया जाता है।
दूसरी रिपोर्ट में ट्रेजरी ने कहा है कि भारत ने सुधार किया है और अगली रिपोर्ट में करंसी मैनिपुलेशन लिस्ट से इसका नाम हटा दिया जाएगा। वर्ष 2018 के पहले 6 महीने में रिजर्व बैंक द्वारा की गई शुद्ध बिक्री से जून 2018 तक की चार तिमाहियों में विदेशी मुद्रा की शुद्ध खरीद कम होकर 4 अरब डॉलर यानी सकल घरेलू उत्पाद के महज 0.2 प्रतिशत पर आ गई। हालांकि अमरीका ने चीन को इस बार भी सूची में बनाए रखा है। मंत्रालय ने इस रिपोर्ट में कहा कि कोई भी देश मुद्रा के साथ छेड़छाड़ की शर्तों पर गलत नहीं पाया गया है।